सुभ असुभ सलिल सब बहईसुरसरि कोई अपुनित न कहईसमरथ कहुं नहिं दोषु गोसाईरवि, पावक सुरसरि की नईइसका अर्थ ये है कि नदी में अच्छी और बुरी दोनो बहते है पर नदी को अपवित्र कोई नही कहता, उसी प्रकार समर्थ व्यक्ति के दोष को नही देखा जाता है। सूर्य, अग्नि और नदी के समान समर्थ को भी कोई दोष नही लगता।448साल बीत गए है रामचरित मानस को लिखे ,आज भी उक्त चौपाई का मर्म शाश्वत है, इसका जीता जागता उदाहरण पिछले सप्ताह पुणे में एक नाबालिग द्वारा अनियंत्रित गति से कार चला कर दो युवकों को कुचल कर मार दिया गया।दोनो…