कांटा लगा या हटा
अविभाजित मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के दमदार लोकप्रिय जन प्रतिनिधि के रूप में बृज मोहन अग्रवाल का नाम किसी के लिए नया नहीं है।बहुत पुराना है। सत्ता चाहे कांग्रेस की हो या उनके भाजपा की, बृज मोहन अग्रवाल के जीत पर पिछले आठ बार से कोई फर्क नहीं पड़ा (सिवाय 2019के विधान सभा चुनाव के जब पहली और आखरी बार उनकी कांग्रेस प्रतिद्वंदी पर बढ़त पिछले चुनाव की तुलना में कम हुआ था)। इसकी भी कसर बृज मोहन अग्रवाल ने 2023के विधान सभा चुनाव में निकाल लिया। इस बार उन्होंने प्रदेश में सर्वाधिक वोट (67हजार)से जीतने का रिकार्ड बनाया।
इस जीत के साथ ही एक चर्चा राजनीति के गलियारे में शुरू हुई कि प्रदेश में बदलते समीकरण के चलते कद्दावर नेताओं का भविष्य क्या होगा?
छत्तीसगढ़ में आदिवासी बहुल क्षेत्रों से भाजपा को जिस प्रकार का समर्थन मिला वह सुखद तो था ही आश्चर्य जनक भी था। सरगुजा की सभी चौदह सीटों पर भाजपा का कमल खिल गया। इसके साथ ही ये भी तय हो गया कि देश और राज्य में राजनीति का ध्रुवीकरण जातिगत ही होगा। हुआ भी विष्णु देव साय राज्य के अपेक्षित जनजाति नेतृत्व के प्रतीक बने। बृज मोहन अग्रवाल की बदकिस्मती है कि वे व्यवसायिक जाति से आते है और छत्तीसगढ़ में ये आम धारणा है कि व्यवसाय से संबंध रखने वाले लोगो ने कभी शोषण किया है(जैसे ब्राह्मणों ने कभी उपेक्षित जाति के लोगो के कान में गर्म शीशा डाला है)। इस कारण वे इस जनम में तो मुख्य मंत्री नही बन सकते थे। मंत्री बनने से उनको भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भी नहीं रोक सकता था लेकिन कद छोटा करने का वजूद केंद्रीय नेतृत्व रखता है और इसका इस्तमाल भी हुआ।
आप अंदाजा लगा सकते है कि केंद्र में स्पष्ट बहुमत272 से 32सीट दूर240सीट में अटकने और सहयोगी दलों के बैसाखी के सहारे के बावजूद प्रथम पांच मंत्री यथावत रहे। इसके पलट छत्तीसगढ़ में पहली दूसरी बार जीते विधायक महत्वपूर्ण विभाग में आसीन हो गए ।ये एक तरह से जनमत की उपेक्षा थी।वरिष्ठता की अवहेलना थी।
छत्तीसगढ़ विधान सभा चुनाव के निर्णय आने के साथ साथ लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हुई तो ये आसार भी नजर आने लगे थे कि भाजपा के प्रयोगशाला में नए रासायनिक लोचा होगा। हुआ भी। कयास के तौर पर बृज मोहन अग्रवाल का नाम उछला या उछाला गया ये राजनैतिक पंडित बहुत अच्छे से समझते है। ये भी कहा जाता है कि केंद्र के एक मंत्री छत्तीसगढ़ में अपने मोहरो को स्थापित करने के चाल में सफल होने केलिए विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान सार्वजनिक रूप से जनता को आशान्वित भी किया था। यदि भाजपा, सामान्य क्षेत्र से बहुमत पाती तो शायद आश्वाशन फलीभूत भी होता लेकिन सारे समीकरण बदल गए।
नया समीकरण क्या बना?
नए समीकरण में बृज मोहन अग्रवाल का कद छोटा किया गया। आठ बार की विजयी विधायक को स्कूल शिक्षा मंत्री बनाया जाना उनकी वरिष्ठता को न केवल अनदेखा करना था बल्कि नौसिखियो के सामने उपेक्षा भी था।शायद लोग भूल जाते है कि योग्यता होने पर पांडवो ने खांडवप्रस्थ को इंद्रप्रस्थ में बदल दिया था। बृज मोहन अग्रवाल ऐसा व्यक्तित्व है जिससे विभाग महत्वपूर्ण हो जाते है भले ही विभाग कितना भी साधारण हो।
मुझे लगता है कि बृजमोहन अग्रवाल के भीतर पांडव जैसे पांच गांव लेने के बाद उसे साम्राज्य में बदलने की क्षमता को दुर्योधन और शकुनि जानते थे वैसा ही कुछ केंद्रीय नेतृत्व में पका। बृज मोहन अग्रवाल को रायपुर संसदीय क्षेत्र से टिकट देकर, राज्य से टिकट काटने का काम हो गया। जीतना उनका स्वभाव है सो रायपुर की जनता ने उन्हे रिकार्ड 5.75लाख वोट से जीता कर दिखा दिया कि वे रायपुर दक्षिण ही नहीं रायपुर लोकसभा अंतर्गत आने वाले नौ विधानसभा क्षेत्र के भी मोहन भईया है।
केंद्र में 400पार के नारे के साथ उतरी भाजपा को आशातीत सफलता नहीं मिली। बहुमत से 32सीट दूर खड़े होने पर बहुत सारे समीकरण बदल रहे है। बहुमत आने पर मनमाने निर्णय लेने की जगह भईया दादा के दिन आ गए है। ऐसे में केंद्रीय नेतृत्व के सामने अपने को बनाए रखने के लिए उन राज्यों में संतुलन बनाने की झखमारी है जहा के वोटर्स ने सरकार बनाने में या कहे भाजपा को 240तक पहुंचाने में मदद की है। छत्तीसगढ़ ने ग्यारह में से दस सांसद दिए है। जो समीकरण संख्यात्मक रूप से मंत्री बनाने के लिए दिखती है याने चार पीछे एक मंत्री, इस हिसाब से छत्तीसगढ़ को कम से कम दो मंत्री मिलने चाहिए थे। अगर वरिष्ठता का भी आंकलन होता तो दुर्ग के सांसद विजय बघेल को पद मिलना था। भाजपा के प्रति समर्पण और वरिष्ठता को ध्यान में रखा जाता तो बृज मोहन अग्रवाल सब पर भारी थे। केंद्रीय नेतृत्व ने बिलासपुर के सांसद तोखन साहू को अवसर दिया है। ऐसा क्यों हुआ, ऐसा क्यों किया गया, ये राजनीति के पंडितो के लिए ग्रह नक्षत्र के चाल का विषय है।
बृज मोहन अग्रवाल को तीन करोड़ लोगो की जगह एक सौ बयालीस करोड़ जनता की सेवा करने का अवसर मिला है। मंत्री पद मिल जाने से कभी पद महत्वपूर्ण हो जाता है और कभी व्यक्ति।इनसे परे बृज मोहन अग्रवाल है जो बिना विभाग के भी उतने ही महत्वपूर्ण है, जितने विभाग में रहते तो होते।