सुभ असुभ सलिल सब बहई
सुरसरि कोई अपुनित न कहई
समरथ कहुं नहिं दोषु गोसाई
रवि, पावक सुरसरि की नई
इसका अर्थ ये है कि नदी में अच्छी और बुरी दोनो बहते है पर नदी को अपवित्र कोई नही कहता, उसी प्रकार समर्थ व्यक्ति के दोष को नही देखा जाता है। सूर्य, अग्नि और नदी के समान समर्थ को भी कोई दोष नही लगता।
448साल बीत गए है रामचरित मानस को लिखे ,आज भी उक्त चौपाई का मर्म शाश्वत है, इसका जीता जागता उदाहरण पिछले सप्ताह पुणे में एक नाबालिग द्वारा अनियंत्रित गति से कार चला कर दो युवकों को कुचल कर मार दिया गया।दोनो युवक पुणे में नौकरी करते थे।
कानून में नशे की स्थिति बचाव का एक बेहतर उपाय है, फिर कार चालक नाबालिग है तो दोहरे बचाव की संभावना थी लेकिन जो न्याय किया गया वह हास्यास्पद तो लगा ही प्रथम दृष्टया संदेहास्पद भी लगा। कल भले ही इस हास्य और संदेह से लबरेज न्याय! पर विराम लग गया है। शुक्र है कि इस मामले में हिट एंड रन का मामला नहीं बना क्योंकि कार चालक मौका ए वारदात की जगह से भाग नही पाया अन्यथा मुंबई की तरह पुणे में भी एक सल्लू मियां का अवतार हो जाता।
पोर्शे कार की कीमत भारत में एक करोड़ बासठ लाख से एक करोड़ बयासी लाख है। बताया जाता है कि द्रुत गति से वाहन चलाने वाले किसी अमीर बिल्डर के पुत्र है। अमीर होना कोई गुनाह नहीं है लेकिन अमीरियत का गलत दिखावा गलत है। इसी प्रकार न्याय में कही अन्याय की बदबू आए तो न्याय भी गलत है।
दो जवान व्यक्तियों की असामयिक मौत से उन दो घरों से दो बेटे, भाई, सहित अनेक रिश्तों की भी असामयिक मौत या यूं कहे कि किसी की लापरवाही के चलते हत्या ही हुई है। इसकी भरपाई भले ही कोई बीमा योजना कर दे या आरोपी के पिता अपने बेटे के आने वाले कई सालो के एवज में दो चार पोर्शे कार की कीमत देने का भी इरादा कर ले लेकिन गया जीवन तो आने से रहा।
समाज में संयुक्त परिवार के टूटने के बाद परिवार और अब माइक्रो परिवार के फैशन के चलते मां बाप अपने बच्चो की सुख सुविधा के लिए विनियोग करते है। इस कारण आज के दौर में संतान भी उद्दंड हो रहे है।घर के बाहर की दुनियां में अलग ही दुनियां है, जिसकी जानकारी मां बाप को भी नहीं रहती है। पाश्चात्य संस्कृतिके अतिक्रमण ने भारतीय सभ्यता को खंडित तो किया है। इसका प्रमाण पुणे की घटना है। बिगड़ैल अभिभावक भी ये नही चाहेंगे कि उनकी औलाद ऐसा कार्य करे जिससे सभी परेशानी में पड़े। इस प्रकार की घटनाओं के बाद समर्थ लोग “डेमेज कंट्रोल” का खेल खेलते है। ये डेमेज कंट्रोल पुणे में पीछे से कही दिखा भी। अठारह साल से कम उम्र नाबालिग की कानूनन मानी जाती है भले ही कृत्य बालिग जैसा हो। सालो पहले दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार और नृशंस हत्या के मामले में ये देखा जा चुका है। पुणे में जो घटना हुई उसके बाद जो निर्णय आया उसकी आलोचना नहीं हुई बल्कि भर्त्सना हुई ठीक वैसे ही जैसे अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने के मामले में हुई, अंत में देश की सर्वोच्च न्यायालय को भी कहना पड़ा कि वे आलोचनाओं का स्वागत करते है।
दो संभावनाओं की गैर इरादतन हत्या के लिए तीन सौ शब्दो का निबंध, ट्रेफिक पुलिस के साथ पंद्रह दिन काम,शराब पीने की आदत का इलाज और काउंसिलिंग सेशन के नाम पर न्यायिक तमाशबाजी हुई है। कोई भी अशिक्षित से भी इस निर्णय की समीक्षा करने को कहा जाए तो वो भी यही कहेगा कि पोर्शे कार चलवाने वाला अपने बेटे को बचाने के लिए चार पोर्शे कार गिफ्ट कर सकता है।
रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां याद आती है दो न्याय अगर तो आधा दो पर इसमें भी यदि बाधा हो तो केवल पांच ग्राम रखो , ऐसा भी न्याय न हो तो न्याय व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगता है,लगना चाहिए। न्यायधीशों के संसकित निर्णयो की समीक्षा के लिए भी एक अभिकरण होना चाहिए।
Pixel 4a Review
The Google Pixel 4A currently tops our rank of the greatest Samsung phones available, beating even the pricier iPhone Ultra Max Mega.
So unsurprisingly this is an absolutely fantastic phone. The design isn't massively changed from the previous generation, but most other elements upgraded.
The Good
- Modern and fresh yet sleek design
- Improved battery life
- Performance of M3 Chipset
- Designed for a larger screen
The Bad
- Lackluster Audio and tiny speaker
- Still ridiculously large
- Can't render the brightest colors
- Missing dedicated ports
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Display8.5
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Performance9
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Features7
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Usability8
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Battery Life10