मेल और बेमेल विवाह
इंदौर के बहुचर्चित राजा रघुवंशी की निर्मम हत्या कांड में अनेक खुलासे हो रहे है और आगे भी होंगे। मीडिया जगत के कुछ सनसनीखेज चैनल/रिपोर्टर “पीपली लाइव रोग” से ग्रस्त है।सच के साथ झूठ भी परोस देंगे।ज्यादा बताने वालों के लिए भी तो कुछ मसाला चाहिए।
ऐसे ही समाचारों में से एक समाचार जिसकी पुष्टि नहीं हुई है और इसकी सत्यता की पुष्टि कैसे और क्यों हो? ये उत्तरविहीन प्रश्न है।
एक जिक्र आया है कि सोनम रघुवंशी ने अपनी मां से अपने विवाह के बारे में राय रखी थी कि वह राजा रघुवंशी से विवाह नहीं करना चाहती है।इस बात का भी कोई प्रमाण नहीं है कि सोनम ने राज कुशवाह से विवाह करने की इच्छा जाहिर की थी। सोनम की मां ने सोनम को उसके पिता के स्वास्थ्य का, अपने परिवार की प्रतिष्ठा का हवाला देकर सोनम को जबरदस्ती विवाह के लिए मजदूर कर दिया। ये भी अपुष्ट बात है कि सोनम रघुवंशी ने अपने इच्छा के विरुद्ध विवाह किए जाने पर, विवाह होने के बाद अपने पति का क्या हाल करे देगी,ऐसा कहा था।
एक बात जिसका जिक्र और हो रहा है कि सोनम ,राज कुशवाह से प्रेम करती थी और राज को पाने के लिए सोनम परिवार के दबाव में विवाह कर ली।
इसी के साथ एक बात और सामने आई है कि सोनम , अपने पति की हत्या कर या करवा के वैधव्य को स्वीकार करती और भविष्य में राज कुशवाह से विवाह कर लेती। एक आदर्श स्थापित होता और अपने प्रेम को सोनम और राज कुशवाह हकीकत का रूप दे देते।
सोनम रघुवंशी के घटनाक्रम में दो बात जो प्रश्नचिन्ह बन कर उभरी है कि “क्या कुछ माता पिता अपनी सामाजिक और आर्थिक प्रतिष्ठा के लिए अपने बच्चों की इच्छाओं को बलि लेते या देते है?”या कुछ बच्चे इतने समर्थ हो गए है कि उनको अपने निर्णय के सामने किसी की बात को मानने के लिए तैयार नहीं है? या पारिवारिक या सामाजिक संघटक इतना कमजोर हो गया है कि मध्य मार्ग बचा ही नहीं है?
ये तो स्वीकार्य है कि शिक्षा के प्रचार और प्रसार ने कुछ स्त्रियों के आर्थिक आधार पर स्वालंबन ने उन्हें सोचने समझने की अतिरिक्त स्वतंत्रता जरूर दे दिया है।वे स्वयं को निर्णय लेने में अपने को ही सक्षम मान लेती है। उन्हें अपने माता पिता का निर्णय बंधनकारी लगता है। दो निर्णयों के बीच केवल और केवल अनुभव का फर्क है।रही बात विवाह की तो,ये एक जुआ है। पहले की पितृ परंपरा में अर्थ साध्य का काम पुरुष का होता था।स्त्रियां घर तक सीमित होती थी। उनके आर्थिक आधार पर परजीवी होना उनके वैचारिक स्वतंत्रता में बाधक होती थी। संतानों का पालन पोषण भी ऐसा होता कि बड़े का निर्णय बाध्यकारी होता था।
एक वाक्य भी दौड़ता था “गधे का बच्चा भी घर में रहे तो उससे प्यार हो जाता है।” इसी कारण विवाह चाहे मेल हो या बेमेल सरकते, रगड़ते, घिसटते, चलते दौड़ते रहे। अब जमाना बदल चुका है। शिक्षा ने समाज की तस्वीर बदल कर रख दिया है। बहु राष्ट्रीय कंपनी सहित व्यवसाय जगत में स्त्रियों की भागीदारी इतनी बढ़ गई है कि वे आर्थिक आधार पर सक्षम हो गई है।
पाश्चात्य संस्कृति ने भी काफी हद तक भारतीय संस्कृति और समाज को प्रभावित किया है।ऐसे में सोनम रघुवंशी के परिवार की चाहत और सोनम रघुवंशी की स्वय की उम्मीद के बीच फर्क करना कठिन है
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