अजीबोगरीब पत्रकार रविश कुमार
कबीरदास जी की प्रसिद्ध पंक्ति है निंदक नियरे राखिये आंगन कुटी छ्वाय, बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय ।” अर्थ भी साफ है कि केवल प्रशंसा करने वालो छवाई आवश्यकता से अधिक आलोचना करने वालो की है, इससे फायदा ये है कि खुद की कमी का पता चलता है।सुधार की गुंजाइश बनी रहती है।
किसी भी साहित्य में “आलोचक” का विशिष्ट स्थान है।इनके द्वारा किसी भी विषय पर लिखित रचना का गूढ़ अध्ययन कर कमी निकाली जाती है।लेखक को अपनी कमी पता चल जाती है और भविष्य में लिखने वालों को कमी से बचने का उपाय।
व्यक्ति, परिवार,समाज, राज्य राष्ट्र, में आलोचना को नकारात्मक पक्ष ही माना जाता है ।किसी भी व्यक्ति की आलोचना कर दीजिए, रिश्ते खराब होने की शुरुआत हो जाती है। सकारात्मक आलोचना स्वीकार्य होना चाहिए लेकिन नकारात्मक आलोचना एक हद के बाद वितृष्णा पैदा करने लगती है।
हमारे देश का दुर्भाग्य है कि ऐसे लोग थोक में हमारे पास उपलब्ध है।इनको दूसरों की खूबी से खुद में हीन भावना जगती है और परिणाम ये होता है कि सामने वाले के बिगाड़ने के लिए षड्यंत्र रचने लगते है।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एक लब्ध प्रतिष्ठित समाचार वाचक है रवीश कुमार, इनकी प्रतिभा
एक जमाने में बहुत थी, सरकार की कमी बताते थे,आलोचक थे, कमी जानने का अवसर सरकार और आम जनता को पता चलता था लेकिन जब अच्छाई में भी बुराई खोजी जाने लगी तो लगा कि कही न कही गड़बड़ है।

इनके द्वारा पत्रकारिता जगत में एक नए नाम का नामकरण किया गया “गोदी मीडिया”। जिस समाज में बैठे थे उसी में वर्ग भेद की शुरुआत की या ये भी कह सकते है कि खुद को सही और दूसरों को गलत साबित करने का ठेका ले लिया।
माना जा सकता है कि दुनियां में किसी भी राजनैतिक दल की सरकार में आने के पहले घोषणा पत्र या और बाद में क्रियान्वयन में इतनी ईमानदारी नहीं होती कि सभी बाते हकीकत में बदल जाए।
कार्यपालिका की अपनी नमाजबूरियां होती है। भ्रष्टाचार की अपनी जगह है।इसमें बांटने पाने वाले में कोई न कोई नेता, वरिष्ठ अधिकारी, राजनैतिक दलों के भईया सहित पत्रकार होते ही है।
रविश कुमार आलोचक बनते बनते इतने कट्टर आलोचक बन गए कि उनको नींद से भी उठा कर पूछा जाए तो वे आलोचना ही करेंगे। हाल ही में उन्होंने “आपरेशन सिंदूर “शीर्षक की अपने तरफ से समीक्षा की और आश्चर्य प्रकट किया कि ये नाम किसने दिया, क्यों दिया?
देश में एक वाम पंथ ,पश्चिम के कम्युनिस्टों की देन है। ये पंथ देश के दो राज्यों तक सीमित हो गया है। पश्चिम बंगाल और केरल। पश्चिम बंगाल की जनता ने इनको पिछले तीन राज्य चुनाव में बेदखल कर रखा है। एक राज्य केरल कब्जे में है। लोक सभा में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के तीन और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के दो सांसद है। जो ये बताता है कि देश में ये खारिज हो चुके है।देश में कम्युनिस्ट विचार को प्रसारित करने के लिए चीन सहित अनेक देश फंडिंग करते है। रविश कुमार पर गाहे बेगाहे वाम पंथ से हाथ मिलाए जाने की बात उठती हैं।
ये बात पुष्ट होती है कि रविश कुमार नकारात्मक भाव की बीमारी से ग्रस्त हो चुके है।उनकी आंखे सच चाहे कितनी भी प्रतिशत हो ,देखना बंद कर चुकी है, कान केवल झूठ सुनता है, मुंह से केवल वो बोल निकलते है जो सच नहीं होते है।
रविश कुमार को देश का कोई भी चैनल क्यों अपने यहां नहीं रखना चाहता? ये प्रश्न स्वयं रविश कुमार को खुद से पूछना चाहिए