दिवाली का त्यौहार बनाम गिफ्ट पैकेट दिवाली हर साल आती है, आगे भी आएगी।खुशियों का पर्व तो है ही,इससे ज्यादा वैभव का भी पर्व है। वैभव और आत्मीयता को दिखाने के अलावा कुछ मीठा हो जाए या मुंह मीठा करने करवाने का भी पर्व दीपावली है।बदलते जमाने के साथ साथ लोग भी बदले ,दस्तूर भी बदले। पहले दिवाली मिलन एक परम्परा थी। अपने परिवार सहित स्नेहीजनों के यहां जाकर शुभ कामनाएं देने का रिवाज था।घर में बने पकवान अपनत्व का परिचायक थे,अभी भी है लेकिन सीमित होते जा रहे हैमोबाइल ने कमोबेश ये हक छीन लिया। शुभ कामनाएं तो इलेक्ट्रानिक हो गई। घर बैठे कितनों को संदेश भेजना है? असीमित विकल्प है। दिल बड़ा हो तो इलेक्ट्रानिक मिठाई भी भेजी जा सकती है।रिश्तों और बाजार में बाजारवाद हावी है। व्यक्ति को उपहार देने की बाध्यता है। स्वार्थ सधता है,या साधना है या साधे रहना है। इस प्रकार के स्वार्थ को दिवाली त्योहार से जोड़कर देखना चाहिए। जन प्रतिनिधियों से,अधिकारियों से या अतिरेक में लाभ पहुंचाने वालों की कीमत को दिवाली उपहार से लगाई जाती है।
प्रतिष्ठित जन प्रतिनिधि है या उच्च अधिकारी, उनके मातहत या लाभ पाने वाले दुकानों से बड़ा और महंगा गिफ्ट पैकेट खरीदते है।ड्राई फ्रूटस के वजन का आंकलन सामने वाले के पद प्रतिष्ठा के आधार पर होता है,स्वयं के स्वार्थ पर भी होता है।अधिकांश निर्वाचित जन प्रतिनिधियों और उच्च अधिकारियो के दरबार में पहुंचे होगा के गिफ्ट पैकेट से अंदाज़ा हो जाता है कि स्वार्थ कितने बड़े स्तर का है। महंगी कारों से निकलते गिफ्ट पैकेट ये बताते है कि जन प्रतिनिधियों या बड़े अधिकारियों की बाजार में क्या कीमत है। देने वाले के बारे में भी ये आंकलन हो जाता है कि उसे कौन सा काम मिला है,या मिलेगा। ऐसे लोगों के लिए बाजार में सबसे सस्ता गिफ्ट पैकेट हजारों रुपए का होता है। एक किलो ड्राई फ्रूटस से लेकर दस किलो तक वजन वाले गिफ्ट पैकेट उपलब्ध रहता है। आजकल जन प्रतिनिधियों और उच्च अधिकारियो के परिवार को भी प्रभावित करने का चलन है। ड्राई फ्रूटस और मिठाई से परे ,इन दोनो के साथ चॉकलेट, कोल्ड ड्रिंक्स, बिस्किट्स, का भी समन्वय रहता है।इनकी भी कीमतें दस पंद्रह हजार रहती ही है।सवाल ये उठता है कि अगर किसी जन प्रतिनिधि या उच्च स्तर के अधिकारियों के यहां गिफ्ट के रूप में 50किलो काजू,50किलो किशमिश, 50किलो बादाम,50किलो पिस्ता याने दो क्विंटल ड्राई फ्रूटस इकट्ठा हो जाए या 100 गिफ्ट पैकेट जमा हो जाए तो ये तो तय है कि खायेगा तो नहीं! अपने सहयोगियों को भी बंटेगा तो पलट कर वापस आएगा भी याने लिए दिए बराबर। दिवाली में घर पर कोई भी मिलने आए, नेग का नाश्ता करता है, ज्यादा से ज्यादा दो तीन टुकड़ा काजू ,किशमिश खा ले बड़ी बात है,याने खपत भी नहीं होना है। किसी भी जन प्रतिनिधि या उच्च अधिकारी के यहां काम करने वालो की संख्या भी बमुश्किल पांच से दस ही होती है।ऐसे लोगों के दिमाग महंगे गिफ्ट से खराब करने का साहस नहीं उठाया जा सकता है। उनके लिए सोन पापड़ी ही विकल्प है।कुछ साल पहले एक ड्राई फ्रूटस के दुकानदार ने बताया कि एक उच्च अधिकारी, ठीक में काजू, किशमिश ,बादाम, और पिस्ता कम दरों में बेचते है। फेंकने और देने से अच्छा बाजार से कीमत वसूल कर लेना है। देखा जाए तो जन प्रतिनिधियों और उच्च अधिकारियो के यहां पहुंचने वाले ड्राई फ्रूटस के गिफ्ट की स्थिति भी सोन पापड़ी के समान ही है।इधर का उधर करो।खायेगा कोई नहीं।क्या दिवाली केवल ड्राई फ्रूटस और महंगे मिठाइयों का स्वार्थ के रूप में सिद्ध करने का साधन मात्र है! नहीं, बदलते वक्त में नए गिफ्ट के रूप में डिनर सेट ग्लास सेट, टी सेट, केसराल, वॉटर बॉटल्स है। महंगे ब्लैंकेट,चादर सेट है। इनके पैकेट इतने बड़े होते है कि लेने वाला कम से कम लेते वक्त विस्मय से आंखे फैला सकता है।बाजारवाद है,स्वार्थ सिद्धि का मौका है, गिफ्ट पैकेट के रूप में प्रतिद्वंदिता है।भला उसका गिफ्ट पैकेट मेरे से बड़ा कैसे,और क्यों! क्या टेंडर इस बार इसे मिलेगा या अपने हाथ से निकल जाएगा।दिवाली है या दिवाला है!