कर्मकांड, कुरीतियों और अंधविश्वास के खिलाफत का दूसरा नाम -कबीर
एक लट्ठ से भेड़ और शेर हांके नही जा सकते है, इस बात को भक्तिकाल(1318से1643)के समयकाल में कबीर दास ने सच करके दिखाया था। भक्तिकाल के थोड़े पहले कर्मकांड, कुरीति,अंध विश्वास, और पाखंड में उत्तरोत्तर वृद्धि होते जा रही थी।हिंदू और मुस्लिम दोनो संप्रदाय के कुछ पंडित और मौलवी अपने को स्थापित करने के फेर में भटकाव के लिए नए नए तरीके अपना रहे है। इनका सार्वजनिक विरोध करने का साहस कबीर दास ने किया था।
इसकी पुष्टि दो दोहे से होती है
1* पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूंजू पहार
याते चाकी भली जो पीस खाय संसार
2*काकर पाथर जोड़ के मस्जिद लियो बनाए
ता चढ़ी मुल्ला बांग दे का बहरा हुआ खुदाय
कबीर,भक्तिकाल में निर्गुण शाखा के ज्ञान मार्गी उपशाखा के कवि थे। उन्होंने कभी भी कागज कलम को हाथ नहीं लगाया लेकिन उनकी व्यवहारिक सोच जबरदस्त थी।
समाज में कुरीतियों, पाखंड, अंध विश्वास और कर्मकांड के विरोध में कबीर को एक सशक्त हस्ताक्षर माना जाता है।
कबीर ,काशी के नागरिक थे। काशी के बारे में ये माना जाता है कि धर्म की नगरी में मरने वाले को मोक्ष प्राप्त होता है। इस बात को लेकर आज भी अनेक व्यक्तियों का दाह संस्कार काशी में ही होता है। सारी दुनियां में सूर्यास्त के बाद अंतिम संस्कार नहीं होता है लेकिन मणिकर्णिका घाट में चौबीसों घंटे दाह संस्कार होता है। काशी के पास ही मगहर नाम का एक स्थान है, इस स्थान के बारे में भी एक धारणा है कि यहां मरने वाले को मोक्ष नहीं मिलता है। कबीर ने इस भ्रांति को तोड़ने का साहस किए और अपने जीवन के अंतिम काल में मगहर चले गए। उनका निधन भी मगहर में हुआ।
मोक्ष से परे देखे तो किसी विद्यालय के छात्र न होने के बावजूद भी कबीर तब से लेकर आधुनिक काल तक के बड़े गुरु माने जाते है।
अपने बारे में कबीर ने बड़े सहज ढंग से कहा था
“मसि कागद छुओ नही कलम
गहि नही हाथ“
देश में आजकल “पढ़ा लिखा व्यक्ति” शब्द प्रचलन में है। अच्छा हुआ कबीर आज के जमाने में नहीं हुए अन्यथा कोई आईआईटियन उनके पढ़े लिखे न होने का आरोप थोप कर उन्हे खारिज कर देता। खैर, पढ़े लिखे होकर शराब जैसी कुरीति के बिकवाली में खेल खेलने वालो के लिए कबीर ने सदियों पहले कह गए थे
सांच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप
जाके हिरदे सांच है ताक ह्रदय आप
कबीर दास ने जो कहा उसे उनके शिष्य धर्मदास ने रमैंनी,सबद और साखी के रूप में संकलित किया है। इनकी संख्या 1464बीजक है।गुरु ग्रंथ साहिब में 226दोहे कबीर के शामिल है। छत्तीसगढ़ का दामाखेड़ा गांव कबीर पंथियों का बड़ा धर्म स्थल है। कबीर के शिष्य सूरत गोपाल ने दामाखेड़ा को प्रचार का प्रमुख स्थान चयनित किया था।
हम लोगो का सौभाग्य रहा कि बचपन में कबीर हमारे हिंदी विषय में एक पाठ के रूप में शामिल थे।
राजस्थान राज्य में एक सप्ताह की कबीर यात्रा का आयोजन होता है जिसमे अनेक गांव में यात्रा के दौरान कबीर गाए सुने जाते है। इसकी जानकारी गूगल में है। अक्तूबर नवंबर के महीने में ये यात्रा होती है। कबीर के साथ ये यात्रा रोचक होती है
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