स्वर्गीय
पूरा परिवार कमरे के भीतर रखे एक पलंग में पड़ी मेरी जीर्ण शीर्ण काया के चारो तरफ बैठे खड़े थे।
कल रात डॉक्टर ने अस्पताल में जवाब दे दिया था।
मुझे अब दवाओ की जरूरत नही है। दुआ से जितने घंटे, दिन इस इहलोक में गुजार लू वही बाकी समय है।
मन से सभी चाह रहे थे कि मैं जाऊं लेकिन घर से बाहर जाने के लिए लाखों बहाने होते है। इस दुनियां से जाने के पहले सांसों का हिसाब किताब होता है। मेरे पास थोड़े बचे हुए थे वरना डॉक्टर के रटे रटाए उद्बोधन से पहले ही रवानगी हो जाती।
मैं, स्पष्ट बोल सकता था सो मैंने अपनी आंखे आखरी बार खोली। फिल्मे मैने बहुत देखी थी पूरा डायलॉग बोले बगैर केवल सस्पेंस थ्रिलर फिल्म में ही चरित्र मारता था। फाइनल टच दिए मरना अच्छी बात नहीं थी। हैप्पी एंडिंग मेरे तरफ से हो इस कारण सालो से एक मार्मिक, संवेदनशील भाषण म याद किया हुआ था
सबकी और मुखातिब होकर मैंने कहा
मेरी बात को ध्यान से सुनना और मेरे जाने के बाद इस पर पूरा अमल हो इसका ख्याल रखना। अगर तुम लोग संवेदनशील होने का दिखावा करके आडंबर करोगे तो मेरी तथाकथित आत्मा को शांति नही मिलेगी।
सब लोग शपथ लो कि मेरी अंतिम भावनाओ का पूरा कद्र करोगे।
कुछ लोग फुसफुसाए, कुछ लोगो ने मुंडी हिलाई।
मैं न चाहते हुए भी आश्वस्त हो गया कि मेरे मरने के बाद ये लोग वैसा ही करेंगे जैसा मैं अंतिम बार चाह रहा हूं।
मैने दीवाल में टंगे भगवान की फोटो को ध्यान से देखा।
भगवान हमेशा की तरह मुस्कुरा रहे थे। मैने प्रति उत्तर में मुस्कुरा कर कहा
आप साक्षी हो। मेरे कही बातो को पालन करवाने के लिए। मैं जानता था कि भगवान को आपने साक्षी बना लिया तो इंसान डर के मारे भगवान के साक्षी होने के कारण लिहाजी जरूर बन जाता है
मैने कहना शुरू किया। शायद क्या मैं विश्वास के साथ दावा कर रहा हूं कि मैं अच्छा, पुत्र, पति, पिता, भाई, सहित दीगर रिश्ते के मामले में पूर्णतः योग्य नहीं रहा। मेरे में स्वार्थी होने का भाव भरपूर था,इस कारण दायित्व निभाने में भी जितना बन सकता था उससे पचास फीसदी दायित्व निभाया। इसका परिणाम ये रहा कि सभी रिश्ते नाते वालो ने मेरी सराहना कम निंदा ज्यादा की। मुझे दीगर लोगो का उदाहरण देकर लाख समझाने की कोशिश की गई लेकिन मेरे लिए मैं ही सबसे सर्व श्रेष्ठ उदाहरण था। अमूमन सभी रिश्तेदारों ने उलाहना देकर कहा था मुझे स्वर्ग में जगह नहीं मिलेगी।
मै भी तर्क वितर्क किए बगैर सहमत हुए कि अगर कर्म का लेखा जोखा चित्रगुप्त की डायरी में लिखा होगा तो स्वर्ग नरक के आबंटन के मामले में आंख मूंद कर मेरे नाम के सामने नर्क ही लिखेंगे। बचपन में बाल कटवाने सैलून जाता था तो वहां एक कैलेंडर टंगा हुआ करता था। नर्क में क्या क्या होता है इसका सचित्र चित्रण हुआ करता था। आंखो के पलक से नमक उठाना, गर्म तेल में उबालना, पत्थर की सब्जी खिलाना मेरा देखा हुआ
मैं अतीत से निकल कर वर्तमान में वापस आ गया। मै जानता था कि मेरे को क्या अपवाद स्वरूप पुण्य आत्मा को छोड़ दे तो यहां जो लोग खड़े बैठे है और जो बेफिक्र होकर जीवन बिता रहे है वे भी नर्क में ही जायेंगे। भगवान भी नर्क का कितना विस्तार कर फेस 1,से 100001,बना चुका होगा। आने वालो की संख्या का अनुमान लगा कर।
मैने आगे कहना शुरू किया
आप सभी से मेरा विनम्रता पूर्वकआग्रह रूपी आदेश है कि मेरे मरने के बाद मेरे नाम के साथ स्वर्गीय मत जोड़ना, शर्म न आए तो नरकीय भी लिख सकते हो लेकिन तुम सभी को झुट्ठले समाज में रहना है जिसमे ये भ्रम है कि हर मरने वाला व्यक्ति स्वर्ग का ही कंफर्म प्री रिजर्वेशन बुकिंग करा के आता है और जा रहा है। अच्छे बुरे का कर्म तो इसी दुनियां में भोगना पड़ता है। मुझे पता था कि मेरे कर्म स्वर्ग आरोहण के लायक थे ही नहीं। मैने अपने अच्छे बुरे कर्म के लिए आदर्श वाक्य बना रखा था। इंसान रोबोट है इसका रिमोट ऊपर वाले के हाथ में है। हम वही करते है जो भगवान करवाता है।
इंद्र के दूत मरने के बाद स्वर्ण वाहन में स्वर्ग ले जायेंगे। ये तथाकथित आत्मा के लिए कहा जाता है। सच्चाई तो ये है कि यमराज ही आएंगे और रस्सी में बांध कर घसीटते हुए नर्क ही ले जायेंगे। इस कारण न स्वर्ग लिखना और न ही नर्क लिखना। समाचार पत्रों में मेरी जवानी की फोटो मत दे देना। पिछले महीने एक फोटो खींचा था किसी ने उसे ही देना। समाचार में देहावसान या निधन लिखना।स्वर्ग सिधार गए है, ये वाक्य कदापि भूल से भी मत लिखना।
दशगात्र और तेरहवीं का शोक पत्र भी छपवाओगे तो ध्यान रखना। तेरहवीं के कार्यक्रम के लिए चयनित फोटो में भी स्व (स्वर्गीय का शॉर्ट फॉर्म) भी मत लिखना वरना मैं नरक में जाकर क्या मुख दिखला पाऊंगा। वहा सब हसेंगे । पता गलत बता कर आया हूं कहेंगे। नरक में कम से कम ईमानदार बनने का मौका देना।
मेरे शब्द मौन हो रहे थे।यमराज भैंस में बैठकर मुस्कुराते हुए आ रहे थे। मै स्वागत के लिए आतुर हो गया था