चांवल मिलिंग और व्यवसायिक नजरिया छत्तीसगढ़ , धान और चांवल का कटोरा या कहे अंग्रेजों की भाषा में rice bowl भी कहा जाता है। ऐसा कहा जाने का भी कारण है क्योंकि इस राज्य के ढाई हजार से अधिक राइस मिलर्स पहले किसानों से मंडी के माध्यम से और अब सरकार द्वारा किसानों से खरीदे धान की कुटाई कर रही है। केंद्र एजेंसी भारतीय खाद्य निगम(FCI) और राज्य की एजेंसी नागरिक आपूर्ति निगम (NAN) को चांवल देने का प्रावधान है।ये काम सलाना रूप से चलता है। छत्तीसगढ़ में सरकार किसी भी राजनैतिक दल की सरकार रहे, उनके सत्ता का रास्ता धान उपजाने वाले किसानों के खेतों से होकर ही निकलता है।इस कारण किसानों को केंद्र सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य से अधिक राशि देने की होड लगी रहती है ।वर्तमान में भाजपा की सरकार केंद्र में भी है और राज्य में भी है याने डबल इंजिन की सरकार।
आमतौर पर डबल इंजिन की जरूरत तब पड़ती है जब जरूरत से ज्यादा भार उठाने की आवश्यकता होती है। किसानों का बोझ तो सरकार उठा रही है, उन्हें आर्थिक रूप से सम्पन्न बनाने का काम कर रही है,हर सरकार के लिए ये काम राजनैतिक बेबसी है पर जिस उद्योग के बल पर सरकार अपनी सफलता के लिए पीठ थपथपाती उसके प्रति सौतेला व्यवहार समझ से परे है। एक सरकार का उद्देश्य उन उद्योगों को संरक्षण देने का होना चाहिए जिनके बल पर वे अपनी सफलता की कहानी देश दुनियां को बताती, दिखाती है। छत्तीसगढ़ की राइस मिलो की सच्चाई जानने के लिए भाजपा को कांग्रेस पार्टी की तुलना में ज्यादा व्यावहारिक होना चाहिए क्योंकि इस पार्टी को स्थापित करने में व्यवसाय जगत का आर्थिक सहयोग छिपा हुआ नहीं है।एक राजनैतिक दल को सरकार चलाने के लिए पिछली सरकार के अच्छे कामों को निरंतरता देना चाहिए उस स्थिति में जब ऐसे कामों से काम बनता दिखे और सरकार को आर्थिक लाभ हो। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पंद्रह साल तक भाजपा की सरकार राज्य में किसानों के हित में धान खरीदते रही बोनस देती रही(दो सालों को छोड़,इसी कारण सत्ता से बाहर भी हुई)। सत्ता में कांग्रेस की सरकार आई तो कोरोना काल के बाद राइस मिलर्स के धान कुटाई की दर 35रुपए से बढ़ाकर 120रुपए किया। इस वृद्धि का कारण भी था। ये बात हर किसान से विधायक बना जन प्रतिनिधि जानता है कि जिस धान की मिलिंग सरकार कराती हैं उससे भारतीय खाद्य निगम द्वारा निर्धारित मापदंड अनुसार चांवल नहीं निकलता है लेकिन राइस मिलर्स अपने हिस्से के धान से इस मात्रा की पूर्ति करता है।इसके अलावा अनेक समस्याओं से दो चार होते हुए सरकार का सहयोग करता है। कांग्रेस सरकार ने किसानों के धान के निष्पादन के लिए व्यवसायिक रुख अपनाया। साल भर धान को रख सूखत के नुकसान से बचे, संग्रहण केंद्रों में धान को रखने के लिए लगने वाले परिवहन व्यय की बचत करवाई। बारिश के मौसम से होने वाले नुकसान से बचाया, और तो और अप्रैल महीने से लगने वाले ब्याज से से भी निजात दिलाई। कांग्रेस सरकार ने मिलर्स को वेंटिलेटर से निकाल कर ऑक्सीजन दिया था।व्यवसाय इसे कहते है। वर्तमान सरकार में एक असमंजस का माहौल है या कहे सामंजयस नहीं है। पिछले सरकार के अच्छे काम को भी गलत नजरिए से देख कर निर्णय करना सही निर्णय नहीं है। सरकार को राइस मिलर्स का सहयोग अनिवार्य रूप से लेना ही पड़ेगा और मिलर्स को सरकार से सहयोग लेना ही होगा लेकिन किसी व्यवसाय को जबरन डंडे के बल पर कोई भी सरकार नहीं चला सकती है। यदि प्रदेश के मिलर्स तीन महीने भी अपना व्यवसाय बंद कर नुकसान सहने पर अड़ जायेंगे तो सरकार हिलेगी नहीं बल्कि अस्थिर हो जाएगी।सरकार को सकारात्मक रुख अपनाने की जरूरत है। राइस मिलर्स के साथ जो बाते हुई,सहमति हुई उसका असर दिखाना चाहिए। जब धान कुटाई करवा लिया गया है, चांवल जमा करवा लिया गया है तो कुटाई की राशि देने में कोताही क्यों हो रही है? किसी राज्य में पूर्ववर्ती के निर्णय भले ही बदले जा सकते है लेकिन आर्थिक दायित्व से किनारा नहीं किया जा सकता है।
सरकार के द्वारा निर्धारित धान खरीदी केंद्र और संग्रहण केंद्रों की भंडारण की सीमा है। नागरिक आपूर्ति निगम को सार्वजनिक वितरण प्रणाली अंतर्गत मुफ्त में चांवल बांटने के लिए चांवल की आवश्यकता है इस कार्य को केवल ओर केवल राइस मिलर्स ही कर सकते है। क्या विष्णु देव साय सरकार खुद के पैर में कुल्हाड़ी मारना चाह रही है या फिर ऐसे अधिकारी है जो दिग्भ्रमित कर सरकार की छवि धूमिल करना चाह रहे है |