आस्था का महा कुंभ, महा कुंभ चले हम 144साल के बाद ऐसा संयोग हुआ कि कुंभ का महा स्वरूप का आयोजन महा कुंभ के रूप में 14जनवरी 2025 से आरम्भ हो गया। इस बार के महाकुंभ की विशेषता ये है कि आस्था के इस महाकुंभ में हर भारतीय डुबकी लगाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है,सफल हो रहा है। एक अंदाजा है कि लगभग चालीस करोड़ भारतीय आस्था का प्रतीक बनेंगे। जब जनमानस के मनो मस्तिष्क में महाकुंभ में डुबकी लगाने की मनोदशा बन रही हो फलीभूत हो रही हो तो हम भी इससे विलग नहीं रह सके। ये बात भी मन में थी कि प्रयाग पहुंच जाने के बाद भी अगर रुकने और त्रिवेणी संगम तक पहुंच नही पाए तो जाना आकरथ हो जाएगा।ये भी बात मन मे आई कि जब जो लोग जा रहे है आस्था की डुबकी लगा कर आ रहे है तो मां गंगा ने बुलाया है, डुबकी भी वही लगवा देगी।और ऐसा हुआ भी।

22जनवरी 25का दिन तय हुआ ।इस तारीख को चुनने की वजह भी थी कि मुख्य शाही स्नान में सामान्य रूप से करोड़ो की संख्या में श्रद्धालुओं की आने की सूचना थी।ये दिन सही मायने में अगाध श्रद्धा रखने वालों का है। जो मन में ठान लेते हैं। हम स्वीकारते है कि जिस दिन डुबकी लगी वहीं हर का शाही स्नान है।बहरहाल रुकने के स्थान की दुविधा लिए प्रयागराज के लिए रवाना हो गए। ट्रेन में पहले से रिजर्वेशन था।ये जरूरी बात है कि आप चाहे ट्रेन से जाए या स्वयं के वाहन से ये मान कर चले कि अगर आपके रुकने की व्यवस्था पूर्व निर्धारित है तो प्रयागराज पहुंचने के बाद कम से कम पांच से छः घंटे पहुंचने में लग जाएंगे। हम भी चुकी स्टेशन से छत्तीसगढ़ मंडप तक पहुंचे तो छ घंटे तब लगे । स्थानीय वाहन चालक प्रयागराज की उन सड़कों से वाकिफ था जो समय बचाने में मददगार बनी। छत्तीसगढ़ मंडप, मुख्यमंत्री विष्णु देव साय जी के शानदार आवास और भोजन व्यवस्था का समागम स्थल है। छत्तीसगढ़ के मूल निवासियो के लिए अकल्पनीय व्यवस्था है। सात सौ लोगों की रुकने की व्यवस्था है।इसे विष्णु देव साय जी की राज्य के नागरिकों की धार्मिक भावनाओं के प्रति एक सहृदयता मानना उचित होगा। इस यात्रा वृतांत के माध्यम से उन्हें हम सभी का साधुवाद। रुकने और भोजन की व्यवस्था से दो बातों से मन बेफिक्र हो गया। 23तारीख को छत्तीसगढ़ मंडप से दो किलोमीटर दूर बहती पावन गंगा के ठंडे पानी में डुबकी देव नदी के प्रति आस्था की आत्मीय डुबकी थी। पहले दिन की रेल यात्रा और प्रयागराज में छः घंटे तक सड़क पर कछुआ चाल से गंतव्य तक पहुंचना थकान दायक था। 24की सुबह छह बजे त्रिवेणी संगम के लिए रवाना हुए तो सड़को पर व्यक्ति ही व्यक्ति थे।

जन सैलाब त्रिवेणी की तरफ अति उत्साह के साथ आगे बढ़ती जा रही थी। पैदल से लेकर दो,तीन ,चार पहिया वाहन में लोग बढ़ते जा रहे थे। गोद में बेफिक्र अबोध बच्चे से लेकर उम्रदराज व्यक्ति इस आध्यात्मिक यात्रा में साथी रहे। त्रिवेणी संगम से तीन किलोमीटर पहले वाहनों की आवाजाही निषेध है। गंगा के तट को यहां से देखो तो दोनों छोर पर बने अखाड़े, प्रतिष्ठान, संत समागम स्थल सहित प्रशासन द्वारा रुकने की व्यवस्था सहित नित्यकर्म से निवृत होने की अच्छी व्यवस्था है। सुबह छ बजे से निकले और त्रिवेणी संगम में नावघाट पहुंचने में चार घंटे लग गए। यहां उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ सहित उनके प्रशासन को बधाई देनी होगी कि हर जगह पर प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति के चलते असहजता का अनुभव नहीं होता। ये जरूर है कि उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों से आए पुलिस अधिकारी सही जानकारी नहीं दे पाते। एक घंटा नाव की प्रतीक्षा करनी पड़ी। आपको नाव वाले सहित, नाव में बैठने वाले मिल जाएंगे। मेला स्थल पर प्रशासनिक कसावट का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक यात्री से त्रिवेणी संगम तक ले जाने ओर वापस लाने का 75 रु प्रति यात्री देने का अनुरोध करते दिखते है। बाकी आप पर निर्भर करता है। त्रिवेणी संगम के पहले यमुना नदी का नीलापन और आगे चलकर गंगा से मिलने का दृश्य मन को असीम शांति देता है। अदृश्य सरस्वती के चलते बना त्रिवेणी संगम में स्नान और बाद की व्यवस्था की सराहना है।

बिना किसी परेशानी के नाव वाले, त्रिवेणी घाट में लाते ले जाते है। ये है कि त्रिवेणी में डुबकी लगाने लायक पानी नहीं है। लेट कर डुबकी लगाना मजबूरी है। डुबकी लगाने वालों को सलाह है कि वे किनारे नहाए।पूरी डुबकी लगेगी। स्नान के बाद प्रयागराज क्षेत्र में (गंगा के दूसरे तट को अरेल क्षेत्र कहा जाता है, इस तरफ निजी तौर पर टेंट की व्यवस्था है। इनकी कीमत आपके आर्थिक सामर्थ्य पर निर्भर करता है। कुंभ में बाजारवाद है, इससे इंकार नहीं है। समय देख आवास, परिवहन की कीमतें बदल रही है। वाहनों के रेट ज्यादा होने की शिकायत है तो समय कितना लगता है ये भी ध्यान देने की बात है। आप प्रयागराज जाए तो गूगल से कुंभ मैप को जरूर देख ले। सेक्टर में विभाजित कुंभ की मैपिंग समझ लेंगे तो कही भी जाने आने में कठिनाई नहीं होगी। साधु संतों के अखाड़े आकर्षण के केंद्र है। इनके स्थानों के हिसाब से अखाड़े है। मुख्य अखाड़ा कहां पर है ये पता लगाना कठिन है क्योंकि एक सम्प्रदाय के अनेक स्थानों पर अखाड़े है।किसी भी स्थान का पता पुलिस या प्रशासन वालों से पूछने के बजाय पहले ये पूछ ले कि वे प्रयागराज से है अथवा बाहर से।बाहर वाले अधिकारी मेला स्थल के भूगोल से वाकिफ नहीं है। इनके कारण आप भटक सकते है।

मेला स्थल में लेटे हुए हनुमान मंदिर(महत्वपूर्ण मंदिर है,सामान्य दर्शन में दो घंटे लगते है) के पास कम रेट में गुणवत्ता पूर्ण नाश्ता खाना की व्यवस्था है। कम दरों में पेट पूजा हो सकती है। कहा जाता है कि प्रशासन तभी बेहतर काम करता है जब उसे थोड़ा सा रूखा होने का अधिकार मिलता है। प्रयागराज में ये छूट मिली हुई है। एक परेशानी जो सामान्य है कि आमजनों केमहाकुंभ में आने के साथ साथ अति विशिष्ट महानुभावों (VVIP) का भी आगमन हो रहा है। सायरन बजाती गाड़ियों का काफिला आम जनों को क्रोधित करता है, वे मन मनोस के रहते है। बेहतर ये होता कि VVIP भी गंगा में आम व्यक्ति बन लोकतन्त्र को आसान बनाते।आखिरकार ईश्वर के समागम स्थल पर ईश्वर से बड़ा कौन अति विशिष्ट व्यक्ति (VVIP) हो सकता है।