भारत का भविष्य और मीडिया
किसी भी विषय के भविष्य में जाने से पहले उस विषय के वर्तमान और अतीत में जाने की सख्त जरूरत होती है।
आज का विषय भविष्य का भारत है और इस भविष्य में मीडिया का भी भविष्य देखा जाना है।
मै आशावादी हूं और मानता हूं कि भविष्य के भारत में मीडिया का भाष्य भी शानदार,जानदार होगा।
पहले अतीत में चलकर देखते है। एक जमाना था जब इलेक्ट्रानिक मीडिया के नाम पर केवल रेडियो हुआ करता था। इलेक्ट्रिक या बैटरी के माध्यम से चलने वाले रेडियो या ट्रांजिस्टर में समयबद्ध समाचार की सुविधा हुआ करती थी। आज भी ये व्यवस्था है और भविष्य में भी रहेगी
इस दौर में प्रिंट मीडिया के रूप में समाचार पत्र थे जो दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक हुआ करते थे। पत्रिकाएं भी होती थी जिनमे विश्लेषण का महत्व हुआ करता था।
हमने प्रिंट मीडिया से निकलकर भारत को टेलीविजन युग में प्रवेश करते देखा, याने कि केवल सुनने तक ही सीमित न रख कर साथ साथ देखने की सुविधा के आगमन का दौर। ये वो समय था जब देश निर्धारित समय पर ड्राइंग रूम या जिस कमरे में टेलीविजन हुआ करता था वहां बैठने के लिए विवश हो गया।
वक्त आज का भी देख ले। एक वृतांत सुनाता हूं। भारतीय फिल्मों का निर्माण काल के शुरुवाती दौर में स्टील कैमरा उपयोग होता था।याने जो भी गतिविधि होती वो स्थिर कैमरे के सामने होती थी। युग बदला और कैमरा चलायमान हो गया। खुले आकाश के नीचे विस्तार हो गया। ऐसा ही भारत के वर्तमान में हुआ। टेलीविजन लैपटॉप और मोबाइल में आ गया। इसी प्रकार प्रिंट मीडिया भी इलेक्ट्रानिक हो गया और इंस्टेंट समाचार पढ़ने और देखने और सुनने के लिए उपलब्ध हो गए।
अब बात भविष्य के भारत और मीडिया की।
एक कहावत है बुरी मुद्रा, अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है। बुरी मुद्रा, कौन चलाता है? एक अच्छा राजनीतिज्ञ,एक अच्छा कारोबारी और एक अच्छा अधिकारी। भारत का भविष्य भी इन्ही के हाथो में था,है और रहेगा। वर्तमान में संपादक से ज्यादा महत्वपूर्ण सीईओ है।
इसके बावजूद आने वाले कल में संभावना देखने की बनती है।
मुझे याद आता है महाभारत के युद्ध का उन्नीसवा दिन ।युद्ध स्थल में लाशों का अंबार लगा था। रूदन के स्वर तीव्र थे, लोग अपने परिचितों को खोज रहे थे। ऐसे में कलयुग को सत्ता सौंपने के लिए द्वापर ने आमंत्रित किया। कलयुग ने द्वापर से पूछा कि मुझे विरासत में क्या दिया जा रहा है। द्वापर ने कहा था -संभावना
भारत के भविष्य में भी मीडिया में संभावना देखना हम सभी का फर्ज है। माना कि वर्तमान में कठिन दौर से मीडिया गुजर रहा है। पार्टी की तरफ से जैसा शब्द साधारण हो चला है। लेकिन मीडिया की जिम्मेदारी जैसे पहली थी ,आज है , वैसे भविष्य में भी रहेगी,। सूचना का संप्रेषण महती जिम्मेदारी है चाहे वह प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रानिक मीडिया। भले ही अखबार भी ई पेपर में बदल जाए। समाचार विभिन्न भाषाओं में मोबाइल में सिमट जाए लेकिन इंसान की फितरत है कि उसकी जिज्ञासा कभी खत्म नहीं हो सकती है। ये जरूर है कि मेहनत करने का ढंग बदल जायेगा।आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की एंट्री हो जायेगी।कॉपी पेस्ट की भरमार भी हो जायेगी लेकिन दूसरा पक्ष कुछ न कुछ जानने में समर्थ ही रहेगा।
एक आग्रह यहां पर जरूरी है कि भविष्य में शब्दो की सीमाएं कम शब्दो में निहित करने की जरूरत होगी। गागर में सागर भरने वालो की आवश्यकता से इंकार नहीं किया जा सकता है।
खोजी पत्रकारिता की जरूरत भविष्य में ज्यादा होगी क्योंकि जैसे जैसे साक्षरता बढ़ते जायेगी पाठको या दर्शको को तथ्यात्मक जानकारी से वंचित नहीं किया जा सकेगा