क्या मनोज तिवारी जीत की हैट्रिक लगाएंगे!
एक दशक पहले जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन आफ इंडिया (SFI) के बैनर पर कन्हैया कुमार प्रेसिडेंट निर्वाचित हुए थे। दिल्ली के छात्र राजनीति से देश में अनेक बड़े नेतृत्व ने जन्म लिया है। इन्ही संभावनाओं को अपने भीतर कन्हैया कुमार ने भी महसूस किया। जेएनयू में उन्होंने क्या किया या नहीं किया ये बीती ताहि बिसार देने वाली बात है।
भारतीय राजनीति के राष्ट्रीय परिदृश्य में चमकने के लिए संसद सबसे अच्छी जगह है। इसमें भी प्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धति से विजयी व्यक्ति का राज्य सभा में जाने की तुलना में ज्यादा महत्व है। राज्य सभा को बैक डोर एंट्री भी माना जाता है।
कन्हैया कुमार ने भी सही रास्ता चुना और अपने पैतृक राज्य बिहार का बेगुसराय लोकसभा क्षेत्र को चुना और भाजपा के गिरिराज सिंह के सामने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से प्रत्याशी बन गए।कांग्रेस ने प्रत्याशी खड़ा न कर बाहरी समर्थन दिया लेकिन समर्थको ने साथ और वोट दोनो नही दिया।कन्हैया कुमार ने जे एन यू का प्रचार तरीका अपनाया ।कुछ हवा भी चली लेकिन गिरिराज सिंह के सामने टिक नहीं पाए। भाजपा के सिंह ने 6.92लाख वोट और कन्हैया कुमार को 2.92 लाख वोट मिले, नतीजा 4.23लाख वोट से हार गए।
हार के साथ भाकपा से मोहभंग भी शुरू हुआ और कांग्रेस में प्रवेश कर लिए। निर्णय भी ठीक था। कहां सिर्फ तमिलनाडु की महज दो सीट और कहां देश भर में 52सीट जीतने वाली कांग्रेस। कन्हैया कुमार को मान सम्मान मिला और वर्तमान लोकसभा चुनाव में उत्तर पूर्वी दिल्ली से आप पार्टी के साथ मिले समझौते में संयुक्त प्रत्याशी बना दिया गया। सामने भाजपा के दो बार के सांसद मनोज तिवारी है,
उत्तर पूर्वी दिल्ली के 2014और2019लोकसभा का परिणाम पर नजर ए इनायत कर लेते है। जिसके आधार पर कांग्रेस और आप पार्टी के समझोते से मिलनेवाले लाभ को देख ले। 2014में मनोज तिवारी के सामने आप पार्टी से प्रो अनंत कुमार थे,कांग्रेस ने जय प्रकाश अग्रवाल को उतारा था। मनोज तिवारी 5.96लाख,प्रो अनंत कुमार 4.92लाख और जय प्रकाश अग्रवाल को 2.14लाख वोट मिले। मनोज तिवारी 1.44लाख वोट के अंतर से जीत गए। यदि 2014में कांग्रेस और आप पार्टी को मिले वोट जोड़ लिए जाए (मिलने की बात अलग है) तो मनोज तिवारी 70हजार बाते अंतर से हार जाते(सब्जबाग)
2019में कांग्रेस ने शीला दीक्षित को खड़ा किया आप पार्टी की तरफ से दिलीप पांडे खड़े हुए। मनोज तिवारी को 2014में मिले 5.96लाख वोट में 1.91लाख की बढ़ोतरी हो गई।शीला दीक्षित 4.21लाख और दिलीप पांडे 1.90लाख में अटक गए। मनोज तिवारी इस बार 3.66लाख वोट के अंतर से जीते। 2019में अगर कांग्रेस और आप पार्टी के प्रत्याशियों के मिले वोट संख्या को जोड़ दे तो भी मनोज तिवारी 1.7 6लाख वोट से जीतते।
2024में भाजपा में केवल मनोज तिवारी को फिर से टिकट दिया है बाकी पुराने सांसदों की टिकट काट दी है। मनोज तिवारी को टिकट दिए जाने पर पार्टी में कोई बवाल नही हुआ लेकिन कन्हैया कुमार को कांग्रेस से टिकट दिए जाने पर बगावत हो गई। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली पार्टी छोड़ दिए, कार्यकर्ता स्थानीय प्रत्याशी की मांग कर रहे थे। इन बातो के चलते कन्हैया कुमार अलग थलग पड़ गए।जे एन यू के पुराने कामरेड साथ दिए है लेकिन अंतर्विरोध बहुत है, इसका नतीजे पर प्रभाव पड़ चुका है। एग्जिट पोल भी बता रहे है कि कन्हैया कुमार दूसरी बार बंटाधार हो रहे है।इसकी पुष्टि 4जून को होगी