24 वर्षों से विधान निर्माण के माध्यम से विकास के नव आयाम स्थापित कर रही है छत्तीसगढ़ विधानसभा
प्रदेश के सर्वोच्च सदन की आसंदी की गरिमा को बनाये रखना मेरे लिए महत्वपूर्ण दायित्व : डॉ रमन सिंह, अध्यक्ष छ:ग विधानसभा
01 नवम्बर 2000 का दिन जब केवल भारत के मानचित्र पर कुछ नई रेखाएं नहीं खिंची गई बल्कि डॉ. खूबचंद बघेल, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, श्री हरि ठाकुर, श्री केयूर भूषण, श्री केशव सिहं ठाकुर और श्री चंदूलाल चंद्राकर जैसे महापुरुषों के दशकों के प्रयास का प्रतिफल रहा कि पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की मांग के लिए मध्यप्रदेश विधान सभा में सर्वप्रथम श्री महेश तिवारी (सदस्य, जनता पार्टी) द्वारा 28 जून सन् 1991 को मध्यप्रदेश राज्य को तीन पृथक प्रदेशों में विभाजित कर छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना हेतु केन्द्र से अनुरोध किये जाने हेतु प्रस्तुत अशासकीय संकल्प अस्वीकृत हो गया। इसके बाद इसके बाद श्री गोपाल परमार ने 18 मार्च 1994 को एक अशासकीय संकल्प प्रस्तुत किया – “सदन का यह मत है कि मध्यप्रदेश के विस्तृत क्षेत्र, भाषा, सांस्कृतिक परंपराएँ, कानून व्यवस्था तथा जनता की सुविधा को दृष्टिगत रखते हुए छत्तीसगढ़ क्षेत्र को अलग कर पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनाये जाने की शासन आवश्यक पहल करें।’’ इस पर तीन घंटे की चर्चा उपरांत संकल्प सर्वानुमति से स्वीकृत हुआ। फिर 15 अप्रैल 1998 को मध्यप्रदेश शासन के सामान्य प्रशासन मंत्री श्री राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला ने मध्यप्रदेश विधान सभा में 15 अप्रैल 1998 को छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना के निर्णय पर भारत सरकार के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित किये जाने का शासकीय संकल्प प्रस्तुत किया जो पारित हुई।
मुझे आज भी श्रद्धेय श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी का सप्रेशाला मैदान, रायपुर की सभा में वो उद्बोधन याद है, जहाँ उन्होंने जनता से वादा करते हुए कहा था कि “आप मुझे 11 सांसद दो और मैं आपको छत्तीसगढ़ दूंगा ।” वर्ष 1998 में बारहवीं लोकसभा चुनाव में भाजपा के घोषणा पत्र में भी पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के प्रति संकल्प लिया गया था और इसी तारतम्य में “मध्यप्रदेश पुनर्गठन विधेयक” लोकसभा में 31 जुलाई 2000 तथा राज्यसभा में भी 09 अगस्त 2000 को पारित हुआ। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर उपरांत 01 नवम्बर 2000 को मध्यप्रदेश से पृथक होकर देश के 26वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ को एक नई पहचान और छत्तीसगढ़वासियों को आकांक्षाओं को सम्मान मिला।
आजादी के पूर्व से छत्तीसगढ़ प्रान्त के संसदीय ज्ञान और लोकप्रिय नेताओं का सदन में रहा है प्रतिनिधित्व।
छत्तीसगढ़ को भले ही भारत के नक़्शे में पहचान सन 2000 में मिली लेकिन छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व आज़ादी के पूर्व से सीपी एंड बरार में दिखाई देता रहा, जब पहली बार 31 अप्रैल 1937 को दुर्ग के संजारी बालोद से चुनाव जीतकर घनश्याम सिंह गुप्त जी सेंट्रल प्रोविंसेस एंड बरार के अंतर्गत विधानसभा अध्यक्ष चुने गए। श्री गुप्त जी लगातार 3 बार (1937-1952) 15 वर्षों तक विधानसभा अध्यक्ष पद को सुशोभित करते रहे।
इसके साथ ही जब 1935 के भारत शासन अधिनियम के अनुसार विधानसभा की भाषा आवश्यक रूप से अंग्रेजी थी तब श्री गुप्त जी ने 1937 में विधानसभा की भाषा हिंदी और मराठी कर दी, अपनी मातृभाषा के प्रति तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष श्री घनश्याम सिंह गुप्त जी का समर्पण और राष्ट्र के प्रति प्रेम ही था, जिसकी वजह से वह न केवल संविधान सभा के सदस्य बने बल्कि विधानसभा के द्वारा उन्हें संविधान के हिंदी ड्राफ्ट कमेटी का अध्यक्ष भी नियुक्त किया गया। डॉ राजेंद्र प्रसाद जी की इच्छा के अनुरु उन्होंने 2 वर्ष 6 माह के अंतर्गत भारतीय संविधान का हिंदी ड्राफ्ट प्रस्तुत किया।
सेंट्रल प्रोविंसेस एंड बरार के सदन में छत्तीसगढ़ प्रान्त के दिग्गज नेताओं की प्रमुख भूमिका थी। यह अद्भुत संयोग था कि छत्तीसगढ़ अंचल के पं. रविशंकर शुक्ल सदन के नेता (मुख्यमंत्री) के रूप में थे, छत्तीसगढ़ अंचल के ठाकुर प्यारेलाल सिंह नेता-प्रतिपक्ष और उसी समय श्री घनश्याम सिंह गुप्त जी सेंट्रल प्रोविंसेस एंड बरार विधानसभा अध्यक्ष की आसंदी पर थे। मध्यप्रदेश विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष के रूप में इसी अंचल के दुर्ग से श्री विश्वनाथ यादव राव तामस्कर, श्री श्यामाचरण शुक्ल भी रहे। इनके अलावा छत्तीसगढ़ अंचल के श्री मोतीलाल वोरा दो बार मध्यप्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री हुए। वर्ष 1985-90 में छत्तीसगढ़ के स्व. श्री राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत रहे।
लेकिन यहां एक प्रश्न यह भी उठता है कि आखिर क्यों एक पृथक छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की आवश्यकता पड़ी? जब छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व इतना मजबूत था और छत्तीसगढ़ के नेताओं का इतना प्रभाव था तब क्यों इस प्रदेश के लोगों के मन में एक पृथक राज्य की भावना थी। इसके लिए जब हम इतिहास के पन्ने पलट कर देखते हैं तब संयुक्त मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ का क्षेत्र खनिज और अन्य संपदाओं से भरपूर होने के उपरांत भी वंचित और उपेक्षित नजर आता है, क्योंकि भोपाल स्थित विधानसभा तक हमारे क्षेत्र की आवाज को पहुंचाना और जनकल्याणकारी योजनाओं से इस अंचल को जोड़ना बहुत कठिन था। यह एक ऐसा दौर था जब हम अगर कवर्धा के लिए मध्यप्रदेश विधानसभा से 5 लाख रुपए की सड़क भी स्वीकृत करवा लाते थे तब वह एक बड़ी उपलब्धि हुआ करती थी। ऐसी स्थिति में छत्तीसगढ़ सिर्फ एक नए राज्य का निर्माण नहीं था बल्कि सुकमा से सरगुजा तक निवासरत इस पूरे क्षेत्र के लोगों को नई आवाज़ देने और उनके अधिकारों को प्राथमिकता के साथ उठाने के लिए एक पृथक पटल भी उपलब्ध किया गया।
14 दिसम्बर सन 2000 को नए छत्तीसगढ़ में जन-जन की आवाज को एक मंच प्रदान करने के लिए छत्तीसगढ़ विधानसभा की स्थापना हुई, छत्तीसगढ़ गठन के समय विधानसभा के समक्ष कई गंभीर चुनौतियां थी। उपयुक्त भवन, संसाधनों की कमी एवं संसदीय विद्या के पारंगत अनुभवियों की कमी के बावजूद छत्तीसगढ़ विधानसभा का प्रथम चार दिवसीय ऐतिहासिक सत्र 14 दिसम्बर से 19 दिसम्बर 2000 तक रायपुर स्थित राजकुमार कालेज के जशपुर हॉल में अस्थायी तौर पर निर्मित सभा भवन में संपन्न हुआ। इसके पश्चात् छत्तीसगढ़ विधानसभा को रायपुर बलौदाबाजार मार्ग पर बरोंदा गांव स्थित भारत-सरकार के जल-ग्रहण मिशन संस्थान के लिए बने नवनिर्मित भवन में स्थानांतरित किया गया और जहाँ आज दिनांक तक संचालित है।
जब छत्तीसगढ़ को अपना पृथक राज्य और पृथक विधानसभा मिली तब अन्त्योदय की विचारधारा के अनुरूप छत्तीसगढ़ के कल्याण और प्रदेशवासियों के उत्थान के लिए हमारी विधानसभा ने ऐतिहासिक निर्णय लिए। राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ की छवि एक पिछड़े और वंचित प्रदेश की थी। भूख से लोगों की मौत हो जाना और सीमित अवसरों की वजह से लोगों के छत्तीसगढ़ से बाहर कूच करने ने प्रदेश की छवि एक पलायन करने वाले राज्य की बना दी थी। जिसे परिवर्तित करने में हमारी विधानसभा ने ऐसे कानून बनाये जो इतिहास के सदैव के लिए अंकित हो गए। जब हमारी विधानसभा ने खाद्य सुरक्षा कानून के अंतर्गत 1 रूपये किलो चावल की योजना को 21 दिसम्बर 2012 सदन में पारित किया तब “भोजन का अधिकार” देने वाला छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य बना। हमारी इस व्यवस्था को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पूरे देश के लिए आदर्श बताया और पीडीएस की सराहना की। इसके साथ ही युवाओं को “कौशल उन्नयन का कानूनी अधिकार” देश में सबसे पहले 21 जुलाई 2013 को हमारी ही विधानसभा में पारित हुआ। हमारी विधानसभा ने लोककल्याण के साथ ही सांस्कृतिक उत्थान पर भी पूरा जोर दिया और 3 अगस्त 2010 को छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग का विधेयक पारित कर छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा दिया। हमारी विधायिका की अद्भुत शक्ति है जो न केवल प्रदेशवासियों के विकास को सुनिश्चित करती है बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों को भी संरक्षित रखकर एक बेहतर संवैधानिक व्यवस्था को स्थापित करती है। हमारी विधानसभा में बजट प्रस्तुत करने की एक बहुत ही सुंदर प्रक्रिया है। कोरोना काल को अपवाद के रूप में छोड़ दें तो हमारे सदन में बजट कभी गिलोटीन (GUILLOTINE) से पारित नहीं हुआ है। हमेशा ही छत्तीसगढ़ विधानसभा ने सभी विभागों के प्रमुख विषयों पर चर्चा करने के बाद बजट को पटल पर रखा जाता है और उसके बाद ही बजट पारित होता है।
छत्तीसगढ़ विधानसभा की एक विशेष प्रक्रिया है, हमारी विधानसभा में यदि कोई सदस्य सत्र के दौरान अपनी कुर्सी से उठकर वेल (गर्भगृह) में प्रवेश करता है तो वह स्वतः ही निलंबित हो जाता है और उसे सदन से बाहर जाना पड़ता है। यह हमारे लोकतंत्र में छत्तीसगढ़ विधानसभा की एक पवित्र प्रक्रिया है जिसका पालन सभी दल करते हैं। यह हमारी विधायिका की ही शक्ति है जो पक्ष और विपक्ष को एक मंच पर लाकर संवाद के दरवाजे खोल देती है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण 26 जुलाई 2007 की वो बैठक है, जिसमें छत्तीसगढ़ के इतिहास में पहली बार विधानसभा के अंदर पक्ष और विपक्ष के बीच 8 घंटे 40 मिनट तक “Closed Door Meeting” हुई। जहां दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सभी ने मिलकर नक्सल जैसी गंभीर समस्या पर खुलकर अपनी बात रखी। संवैधानिक मूल्यों को सुरक्षित रखकर ऐसे अनेकों कीर्तिमान रचते हुए हमारी विधानसभा ने 24 वर्षों की यात्रा पूरी की है।
एक लंबी यात्रा के बाद आज जब हम छत्तीसगढ़ की छठवी विधानसभा को देखते हैं, तब यह विधानसभा अपने युवावस्था के 25वें वर्ष में प्रवेश कर रही है, आज जब हमारी विधानसभा में एक नई ऊर्जा और नव जनप्रतिनिधियों की प्रबल आवाज है, इस परिपक्व होती हमारी विधानसभा में महिला प्रतिनिधित्व की मामले में भी एक कीर्तिमान स्थापित किया है। कुल 90 सदस्यीय सदन में अब तक सर्वाधिक 19 महिलायें निर्वाचित हो कर आई है जो कुल सदस्यों की 20% प्रतिशत है। 50 नए विधायकों में एक नया जज़्बा है और लगभग 14% विधायक हमारे सदन में ऐसे हैं, जिनकी आयु 40 वर्ष से कम है, यानी कुल 13 युवा विधायक हमारी विधानसभा के सदस्य हैं।
छत्तीसगढ़ विधान सभा के प्रत्येक विधान सभा के प्रारम्भ में नव-निवार्चित सदस्यों को संसदीय कार्य-प्रणाली, प्रक्रिया एवं परम्पराओं से अवगत कराने की दृष्टि से प्रबोधन कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है, जिसमे प्रबोधन के लिए छत्तीसगढ़ और विभिन्न राज्यों के विधान सभा के अध्यक्षों, भूतपूर्व मंत्रियों तथा वरिष्ठ सदस्यों को आमंत्रित किया जाता है। इसी तारतम्य में छत्तीसगढ़ के छठवें विधानसभा में जनवरी 2024 में प्रबोधन के लिए विशेष रूप से लोकसभा के स्पीकर माननीय ओम बिरला जी, भारत के उपराष्ट्रपति माननीय श्री जगदीप धनखड़ और केंद्र सरकार के गृह मंत्री माननीय श्री अमित शाह, तत्कालीन केन्द्रीय स्वास्थ मंत्री माननीय श्री मनसुख एल. मंडाविया, श्री सतीश महाना जी माननीय अध्यक्ष उत्तर प्रदेश विधान सभा को भी आमंत्रित किया गया।
हमारी छत्तीसगढ़ विधानसभा ऐसी अनेकों ऐतिहासिक अवसरों की साक्षी बनी है, जिसने प्रदेश का गौरव बढाया है, द्वितीय विधान सभा की अवधि में 28 जनवरी, 2004 को भारत के राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने छत्तीसगढ़ विधानसभा में सदस्यों को संबोधित किया जो भारत वर्ष के किसी भी राज्य की विधान सभा में राष्ट्रपति के संबोधन का यह पहला कार्यक्रम था। इसके बाद राष्ट्रपति महामहिम श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने भी जून 2011 में विधानसभा को सम्बोधित किया।
आज जब हम अपनी विधानसभा के रजत जयंती वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, तब छत्तीसगढ़ के साथ-साथ हमारे विधानसभा की अपनी युवावस्था में पहुंच चुकी है। इस युवावस्था में जब एक नौजवान सशक्त और आत्मनिर्भर होकर मजबूती के साथ आगे बढ़ता है, इसी तरह हमारी विधानसभा भी आत्मनिर्भर होकर एक नए मार्ग पर आगे बढ़ रही है। राजधानी के नवा रायपुर के सेक्टर 19 में महानदी (मंत्रालय) और इन्द्रावती (विभागाध्यक्ष) भवन के पीछे मध्य में नया विधानसभा भवन को 2025 तक पूर्णरूप से तैयार करने का लक्ष्य लेकर हम आगे बढ़ रहे हैं। अभी तक जहाँ हमारी विधानसभा भारत-सरकार के जल-ग्रहण मिशन संस्थान के लिए बने भवन में संचालित थी, वहीं इस नई विधानसभा में हम सशक्तिकरण की नई गाथा लिखने जा रहे हैं। इस विधानसभा भवन में छत्तीसगढ़ की आत्मनिर्भरता की भावना के साथ ही अत्याधुनिक सुविधाएँ, नई तकनीक और डिजीटलीकरण का विजन भी समाहित है। इसके सदन में 200 सदस्यों की बैठक क्षमता एवं नए विधानसभा भवन में विधानसभा सचिवालय, विधानसभा का सदन, सेंट्रल-हॉल, विधानसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्री तथा मंत्रियों के कार्यालय होंगे। यहां 500 दर्शक क्षमता का ऑडिटोरियम भी बनाया जाएगा। नवीन विधानसभा भवन प्रकृति के प्रति भी संवेदनशील है, जिसमें सौर ऊर्जा से संचालन के साथ ही पूरे भवन परिसर में अधिकाधिक वृक्षारोपण, रेन वाटर हार्वेस्टिंग व टेक्नोलॉजी का समावेश और समुचित उपयोग सुनिश्चित करते हुए भवन विकसित किया जा रहा है। इस नए विजन के साथ जब हम एक नई शुरुआत कर रहे हैं तब समस्त प्रदेशवासियों को विधानसभा के 24वें स्थापना दिवस पर हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं। हम सभी मिलकर आने वाले समय में अपने छत्तीसगढ़ को संवैधानिक रूप से और अधिक मजबूत बनाएंगे एवं लोकतंत्र को सशक्त करते हुए विधानसभा की गरिमा को आगे अक्षुण्ण बनाए रखेंगे।