राजकुमार राव और श्रीकांत बोल्ला
दुनियां में संपूर्ण शरीर का मालिक अगर कुछ उपलब्धि पा ले तो कोई बड़ी बात नहीं होती है लेकिन ऐसा व्यक्ति जिसका कोई विशेष अंग बाधित हो और वह आसमान छू ले तो बहुत बड़ी बात हो जाती है। ऐसी ही एक जीती जागती शख्सियत है -श्रीकांत बोल्ला। ये शख्स दृष्टिहीन है, लेकिन जिनकी दोनो आंखे है उनसे लाख गुना की दूरदृष्टि रखता है। इससे प्रेरित एक फिल्म भी आ रही है जो “श्रीकांत बोल्ला” के नाम से ही है। राजकुमार राव ने इस किरदार को जीने की कितनी सफल कोशिश की है ये तो फिल्म देख कर पता चलेगा ।
श्री कांत बोल्ला, आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम जिले के सीतारामपुरम के एक साधारण परिवार में जन्म लिए थे। जन्म से दृष्टि हीन होने के कारण उनके परिवार को लोगो ने सलाह दिया था कि इस बच्चे का जीवन स्वयं और परिवार के लिए कष्टप्रद रहेगा। बेहतर है इसे दफना दिया जाए। इस विचार से असहमत माता पिता ने बच्चे को जीवन जीने का अधिकार दिया। श्रीकांत का नाम, उनके पिता ने क्रिकेट खिलाड़ी कृष्णमाचारी श्रीकांत के नाम के कारण रखा। प्रायमरी स्कूल में श्रीकांत को दृष्टिहीन होने के कारण पीछे बैठाया जाता रहा। अपने में संघर्ष की माद्दा हो तो असफलता दूर भागती है। श्रीकांत ने आडियो की मदद से पांचवी से दसवीं तक की परीक्षा उत्तीर्ण की। दसवीं के बाद विषय विशेष के चयन की बात आई तो स्कूल प्रबंधन ने विज्ञान विषय देने से इंकार कर दिया। श्रीकांत ने अदालत की शरण ली। अदालत ने सशर्त अनुमति दी जिसमे उनकी सुरक्षा का जिम्मा श्रीकांत को खुद उठाना था। इस चुनौती को श्रीकांत ने स्वीकार किया। बारहवीं के बोर्ड परीक्षा में 98पर्सेंट के साथ उत्तीर्ण हुए। उन्हे देश की सर्वश्रेष्ठ इंजीनियरिंग संस्था आईआईटी ने प्रवेश नहीं दिया । श्रीकांत ने एमआईटी की परीक्षा उत्तीर्ण कर पहले अंतराष्ट्रीय दृष्टिहीन विद्यार्थी बन स्लोवन स्कूल ऑफ मैनेजमेंट से पास आउट होकर भारत आए और अपने दोस्त रवि मंथा के साथ मिल कर बोलेंट इंडस्ट्रीज की स्थापना की ।यह कंपनी, टाटा की मदद से सुपारी और कंज्यूमर पेकिंग का काम करती है। एक दृष्टिहीन ,बारह सौ लोगो को रोजगार उपलब्ध करा रहा है। कंपनी का टर्न ओवर 150करोड़ का है।
यहां महाभारत का एक प्रसंग याद आता है कि कर्ण ने कृष्ण से पूछा था कि” इतना दान करने के बाद भी कर्ण के प्रति सहनुभूति क्यों नही है?” कृष्ण ने जवाब दिया था” तुम सूत पुत्र होकर अपने समाज के उत्थान के लिए ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे वे आत्मनिर्भर होते। दान, अनेक अवसरों पर सामने वाले को परजीवी भी बना देता है।” श्रीकांत बोल्ला ने कृष्ण की बात को समझा और अपनी कंपनी में बारह सौ कर्मचारियों में उन लोगो को रोजगार दिया जो किसी न किसी व्याधि से पीड़ित है। इस नेक काम के अलावा श्रीकांत “समन्वयी” नाम की संस्था चलाते हैं जो ब्रेल प्रिंटिंग प्रेस के माध्यम से दृष्टि हीन लोगो को प्रशिक्षित करती है। श्रीकांत बोल्ला
के पारिवारिक जीवन में वीरा स्वाति नाम की पत्नी है और एक बेटी है।नाम बहुत ही इमोशनल है – नैना।
बायोपिक, फिल्मों की दुनियां में ऐसा क्षेत्र है जहां किसी ख्याति प्राप्त व्यक्ति के संघर्ष और सफलता को लेकर समाज को प्रेरणा देने की कोशिश होती है। 1946में डा कोटनीस की अमर कहानी फिल्म भारत में किसी व्यक्ति के जीवन पर बनी पहली बायोपिक थी। इसके पहले धर्मिक किरदारों के नाम पर फिल्मे बना करती थी। पहली मूक फिल्म “राजा हरिश्चंद्र”को भी बायोपिक माना जा सकता है। कल लगने वाली फिल्म श्री कांत बोल्ला की भूमिका राजकुमार राव निभा रहे है।आप देख सकते है