कांग्रेस को परिवार दिवस की बधाई
आज विश्व परिवार दिवस है। एक तरफ हर संप्रदाय(एक को छोड़ कर) में परिवार में टूटन बढ़ते जा रही है तो दूसरी तरफ कांग्रेस की राजनीति में टूटन की बात गलत साबित हो रही है। एक परिवार के लिए प्राइवेट लिमिटेड कंपनी हो गई है। आजादी के बाद बहुमत के बावजूद सरदार वल्लभ भाई पटेल को गांधी की हठ धर्मिता के चलते पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रधान मंत्री क्या बने परिवार वाद का भूर्ण रोपित हो गया। अपने बाद इंदिरा गांधी ( न कि दामाद फिरोज गांधी) को सत्ता सौंपने का सारा रिहर्सल शुरू हो गया। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आरंभिक दौर में सत्ता और संगठन दोनो की बागडोर अपने पास रखा। साथ ही साथ इन्दिरा गांधी को ट्रेनिंग भी देते रहे। 1964में पंडित जवाहरलाल नेहरु के आकस्मिक निधन से सारा समीकरण गड़बड़ा गया। अगर पंडित जवाहरलाल नेहरू का आकस्मिक निधन नही हुआ होता तो 1963में जवाहर लाल नेहरू देश की सत्ता इंदिरा गांधी को ही सौपते। बहरहाल लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने तो इंदिरा गांधी केबिनेट में आ गई । ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री की संदिग्ध मौत से अनेक सवाल जो खड़े हुए वे आज भी सर उठाए खड़े है। आगे जो होना था वो हुआ और देश की सत्ता इंदिरा गांधी को मिल गई, ये परिवारवाद का पहली डंगाल थी जो आगे ऐसा जड़ पकड़ी कि कांग्रेस में एक परिवार का एकाधिकार हो गया।
इंदिरा गांधी के साथ साथ संजय गांधी पनप रहे थे लेकिन आततायी थे, सनक ऐसी कि इंदिरा गांधी पर भारी पड़ने लगे। संजय गांधी का भी आकस्मिक निधन हुआ, यहां भी एक बार संदेह के बादल छाए। देश की प्रधान मंत्री रहते हुए इंदिरा गांधी की हत्या हो गई। कांग्रेस में एक बार फिर परिवार वाद का राजकुमार खोज कर सत्ता का भार राजीव गांधी को सौप दिया गया। पंडित जवाहरलाल नेहरु,इंदिरा गांधी और राजीव गांधी सत्ता और संगठन के पर्याय रहे। राजीव गांधी के आकस्मिक निधन से गांधी परिवार में एक ही योग्य अधिकारी बची थी, कहने के लिए संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी भी थी लेकिन वे एक प्रधान मंत्री के भारतीय सास होने की त्रासदी से घर बाहर कर दी गई थी।
राजीव गांधी के जाने के बाद कांग्रेस में देश विदेश का मुद्दा बढ़ने लगा। राहुल गांधी तब उम्र के आधार पर वयस्क नही थे।\
1977से विपक्ष के मजबूत होने और कांग्रेस के कमजोर होने की भी दास्ता जड़ जमाना शुरू हुआ। एक पार्टी के बजाय गठबंधनों की सरकार का फैशन शुरू हुआ। कांग्रेस के हाथ से सत्ता सरकने लगी। ऐसे में संगठन पर नजर लगी और एक बार फिर सोनिया गांधी को पार्टी सौप दी गई। कांग्रेस के अध्यक्षों के कार्यकाल में सर्वाधिक काल साल सोनिया गांधी अध्यक्ष रही। 2004में अवसर आया था कि चौथे प्रधान मंत्री के रूप में नेहरू गांधी परिवार के किसी सदस्य की फिर ताजपोशी हो लेकिन भविष्य की गणित ये इशारा कर रही थी कि सोनिया गांधी के संगठन और सत्ता को साथ साथ सम्हाला गया तो कांग्रेस में विदेशी मुद्दा काम कर जायेगा और भविष्य में किसी भी प्रकार की संभावना समूल नष्ट हो जाएगी। ऐसे में एक आवरण के रूप में मन मोहन सिंह अवतरित हुए। प्लान बी ये था कि इन सालो में राहुल गांधी को परिपक्व होने का पर्याप्त समय मिल जायेगा लेकिन गठबंधन सरकार की मजबूरी और हिंदुत्व के मुद्दे ने कांग्रेस को दहाई संख्या में ला खड़ा कर दिया।
पिछले दस सालों से देश में कांग्रेस की तरफ से सही चुनौती नहीं मिल रही है। उल्टा राहुल का साथ देने के लिए वाड्रा परिवार में गई प्रियंका अपने नाम के आगे गांधी परिवार का टैग लगाकर प्रियंका वाड्रा गांधी बनकर आ गई।
गांधी परिवार की जड़े अब कमजोर हो रही है।सोनिया गांधी, रायबरेली से पलायन कर राजस्थान से राज्यसभा में बैठ गई है। 2019में अमेठी से हारने वाले राहुल गांधी, वायनाड में मतदान होते तक चुप बैठे थे, मतदान खत्म होते ही अमेठी में स्मृति ईरानी के सामने आने से कल्टी मारकर रायबरेली से खड़े हो गए।सारा परिवार रायबरेली में नामांकन के समय बेटे भाई के साथ खड़ा था। कांग्रेस में भले ही टूट होती रहे लेकिन गांधी परिवार, एकजुट परिवार का बेमिसाल उदाहरण है। आज विश्व परिवार दिवस पर समूचा राष्ट्र चाहे तो बधाई दे सकता है