उप मुख्य मंत्री ही उप मुख्यमंत्री
दुनियां भर के लोकतांत्रिक देशों में शायद भारत एक ऐसा देश है जहां के राज्यो में उप मुख्यमंत्री जैसा पद सत्ता संतुलन अथवा तुष्टिकरण के लिए के लिए सृजित किया गया है। भारत के संविधान में उप मुख्यमंत्री पद की व्याख्या ही नहीं है। इसके बावजूद धड़ल्ले से आधे से ज्यादा राज्यो में उप मुख्यमंत्री कार्यरत है।
आंध्र प्रदेश में वायएसआर के कार्यकाल में पांच पांच उप मुख्यमंत्री हुआ करते थे।शुक्र है इस बार चार कम हो गए है।
जनसेना पार्टी के नेता पवन कल्याण को आंध्र प्रदेश का नया उप मुख्यमंत्री बनाया गया है।
आज की स्थिति में 14 राज्यो में19 उप मुख्यमंत्री हो गए है।कुछ दिन पहले उड़ीसा में कनकवर्धन सिंह देव और पार्वती परिधा को उप मुख्यमंत्री बनाया गया है।
पार्टीवार देखे तो भारतीय जनता पार्टी के 13उप मुख्य मंत्री, कांग्रेस,नागालैंड पीपुल्स फ्रंट, के दो दो, नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोगेसिव पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, और जन सेना पार्टी का एक एक मुख्यमंत्री दायित्व सम्हाल रहा है
*आंध्र प्रदेश-
1.पवन कल्याण
*छत्तीसगढ़
1.अरुण साव
2.विजय शर्मा
*राजस्थान
1.दिया कुमारी
2.प्रेम चंद बैरवा
*मध्य प्रदेश
1.राजेंद्र शुक्ला
2.जगदीश देवड़ा
*महाराष्ट्र
1.देवेंद्र फडणवीस
2.अजीत पवार
*मेघालय
1.प्रेस्टोंन टिंगसोंग
2. सिनया व्यालोंग धार
*नागालैंड
1.यानथुंग पैटन
2.टी आर पेलियांग
*अरुणाचल प्रदेश
1.चोना में
*बिहार
1.सम्राट चौधरी
2.विजय कुमार सिन्हा
*हिमाचल प्रदेश
1.मुकेश अग्निहोत्री
*उड़ीसा
1.कनकवर्घन सिंहदेव
2.पार्वती परिधा
मेघालय और नागालैंड में विधान सभा सदस्य की संख्या के आधार 2- 2 उपमुख्यमंत्री होना किसी समीकरण की ओर इशारा करते है। उत्तर प्रदेश के विधानसभा सदस्य संख्या की तुलना में 2 उपमुख्यमंत्री होना समझ मे भी आता है लेकिन नागालैंड औऱ मेघालय? समझ सकते है कि बहुदलीय समझौते का क्या फर्क पड़ता है।
उपमुख्यमंत्री पद कोई संवैधानिक पद नहीं है। भारत के संविधान में अनुच्छेद 163, 164 में राज्यो के लिये केवल मुख्यमंत्री पद का उल्लेख है। संविधान के हिसाब से जो पद उल्लिखित नहीं है उसका संवैधानिक मूल्य भी नहीं है। केवल राजनीति का सृजित पद है। देश मे तीन प्रकार के विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र है ।सामान्य, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति। उपमुख्यमंत्री के चयन की सर्वोच्च प्रक्रिया में इसी फार्मूले को स्वीकार किया जाता है। इसके बाद क्षेत्रीय मुद्दा दम भरता है। दो या तीन दल मिलकर सरकार बनाये तो भी उपमुख्यमंत्री जरूरी ही हो जाते है। महाराष्ट्र उदाहरण है। केवल बाहर से मदद करने का सार्वजनिक उद्घोषणा करने वाले देवेंद्र फडणवीस एक फ़ोन पर वैसे ही उपमुख्यमंत्री बन गए जैसे डी. शिवकुमार। उपमुख्यमंत्री पद सत्ता में संतुलन का सफल आजमाया तरीका है।
देश मे आज़ादी से पहले से पहले उप मुख्यमंत्री पद सृजित हो चुका था। बिहार पहला राज्य बना जहां 1939 मे अनुराग नारायण सिन्हा पहले पहल उपमुख्यमंत्री बने। स्वतंत्र भारत मे 1959 में आंध्र प्रदेश पहला राज्य बना और कोंडा वेंकट रंगा रेड्डी पहले व्यक्ति बने जो उपमुख्यमंत्री बने। इसके बाद से उपमुख्यमंत्री पद पॉलिटिकल इंजीनियरिंग का समीकरण बन गया। एक दलीय व्यवस्था जिस जिस राज्य चरमराई वहां उप मुख्यमंत्री बने। इसके बाद जाति और शक्ति संतुलन के लिए उप मुख्यमंत्री बने। कर्नाटक शक्ति संतुलन का उदाहरण है। कर्नाटक में एस एम कृष्णा पहले उपमुख्यमंत्री 1989 में बने। कर्नाटक में अब तक 10 उपमुख्यमंत्री बन चुके है। वर्तमान मुख्यमंत्री सिद्धारमैया दो बार उपमुख्यमंत्री रहे है तब उनका दल जनता दल था। यदुररप्पा भी कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री रह चुके है। भाजपा से 5, कांग्रेस और जनता दल से 2-2 औऱ जनता दल सेकुलर से एक उपमुख्यमंत्री कर्नाटक को मिले है।
एस एम कृष्णा, सिद्धारमैया औऱ यदुररप्पा कालांतर में मुख्यमंत्री भी बने। माना जा सकता है कि सब कुछ ठीक ठाक रहा तो डी शिवकुमार भी ढाई साल बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री बन सकते है।
देश में महिला उप मुख्यमंत्री की परंपरा जमुना देवी के साथ शुरू हुई । मध्य प्रदेश में 1दिसंबर 1998को पहली महिला उप मुख्यमंत्री बनी थी।उनके बाद कमला बेनीवाल(राजस्थान) राजिंदर कौर भट्टल (पंजाब) पामुला पुष्पा श्रीवानी(आंध्र प्रदेश) रेणु देवी(बिहार) उप मुख्यमंत्री बनी। वर्तमान में केवल राजस्थान में दिया कुमारी देश में इकलौती महिला उप मुख्यमंत्री है