बेचारे अधीर रंजन चौधरी याने “अधीर दा”
भारतीय राजनीति के पिछले दो दशक में अनेक ऐसे नेता हुए है जिनकी सहजता ने उन्हें पार्टी से ऊपर रखा है।उन्हे लोगो ने भरपूर स्नेह दिया है। ऐसे ही एक नेता है पश्चिम बंगाल के अधीर रंजन चौधरी।
पश्चिम बंगाल की राजनीति को देखे तो ये वो राज्य है जहां कामरेड ज्योति बसु ने सर्वाधिक 23 साल तक मुख्य मंत्री बनने का रिकार्ड बनाया था। पश्चिम बंगाल ही वो राज्य था जहां से सत्ता कांग्रेस के हाथ से1967में छिटकनी शुरू हुई थी। 1972से1977तक सिद्धार्थ शंकर रे अंतिम कांग्रेसी मुख्य मंत्री रहे । इसके आगे के त्रियालिस साल में तैतीस साल कम्युनिस्ट पार्टी का राज रहा और पिछले दस साल से तृण मूल कांग्रेस का राज जारी है।
किसी भी राज्य में विपक्ष में दूसरे नंबर पर रह कर पार्टी के वजूद के लिए संघर्ष करना बहुत बड़े कलेजे का काम होता है।1996से कांग्रेस पश्चिम बंगाल में विपक्षी पार्टी भी नही रही है।।लोकसभा में भी कांग्रेस 2014में चार, 2019में दो और 2024के लोकसभा चुनाव में एक सीट पर सिमट गई है।
इतनी विपरीत परिस्थितियों में अधीर रंजन चौधरी अकेले ऐसे नेता थे जो कांग्रेस की पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के खत्म होते जनाधार को बचाने में लगे थे, इस बार वे भी बहरामपुर लोकसभा सीट बचा नही पाए। अधीर दा, 1999से लगातार 2019तक बहरामपुर से पांच बार सांसद रहे । हर बार उनको मिलने वाले वोट की संख्या बढ़ते जा रही थी इस कारण ये माना जा रहा था कि 2024में भी जनमत उनके साथ रहेगा लेकिन तृणमूल कांग्रेस के यूसुफ पठान ने अधीर दा को हरा दिया। इस बार तृणमूल मूल कांग्रेस को 5.14लाख वोट मिले जबकि अधीर दा को 4.39लाख वोट ही मिले। बहरामपुर में नौ फीसदी मुस्लिम मतदाता है। पिछले चुनाव तक इनका झुकाव अधीर रंजन चौधरी की तरफ था।इस बार वे तृण मूल कांग्रेस के मुस्लिम प्रत्याशी होने के नाते यूसुफ पठान के पक्ष में चले गए।
अधीर दा की राजनीति 1991से शुरू होती है जब वे राजीव गांधी के साथ जुड़े। इसी साल उन्हे नाबाग्राम विधानसभा से कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया। अधीर दा चुनाव हार गए।1996में फिर मौका मिला तो बड़े अंतर से जीते। 1999से वे लोकसभा के सदस्य बने और 2024तक उनकी सदस्यता रही। अधीर दा 2014से पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे। तृणमूल कांग्रेस के इंडी गठबंधन में हिस्सा न बनने के पीछे अधीर दा का ही विरोध माना गया। ममता बनर्जी और अधीर दा की पटरी कभी ठीक नहीं बैठी।
अधीर दा की बंगाली उच्चारण के साथ बोली जाने वाली हिंदी का सदन में विशेष लुत्फ लोगो ने लिया और कई बार इसके चलते अधीर दा विवाद में भी पड़े।
चुनाव प्रचार के दौरान अधीर रंजन चौधरी से पूछा गया था कि अगर हार गए तो क्या करेंगे? अधीर दा का जवाब था “राजनीति ही उनका व्यवसाय है हार गए तो बहरामपुर की गलियों में मूंगफल्ली बेचेंगे”
लोकसभा में इस बार अधीर दा नही दिखेंगे। उनको वायनाड से उपचुनाव लड़ा कर सदन में लाया जा सकता था लेकिन वायनाड सीट प्रियंका वाड्रा के लिए सुरक्षित घोषित कर दिया गया है।