“अंतिम संस्कार”
रायगढ़ न्यायालय के परिसर में रामनाथ चौहान जाने पहचाने अर्जी नवीस थे।सारे वकील उन्हे मुद्दे दे बेफिक्र हो जाते। क्या शपथ, क्या वकालतनामा, क्या याचिका, बस विषय बता दो, उंगलियां टाइप राइटर में दौड़ने लगती। बदले में रामनाथ पैसे पूरे लेते। दस साल में इतना पैसा इकट्ठा हो गया कि शहर से लगे एक गांव में दो एकड़ जमीन खरीद ली।
रामनाथ का परिवार भी छोटा न था।पांच लड़के दो लड़कियां थी। समय रहते लड़कियां बिहा दी। दो लड़के रमेश और महेश इंजीनियर बने, एक लड़का विवेक ग्राम सहायक बन गया ।मनोज और महेंद्र पढ़ नहीं पाए तो मनोज को साथ में कचहरी में सहायक बना लिया। महेंद्र कम दिमाग का था सो घर में ही रहता।
वक्त तेजी से बीत रहा था। चार लडको की शादी के बाद लगा कि संपत्ति का जीते जी बटवारा कर देना चाहिए। शहर के पास जिस गांव में दो एकड़ जमीन लिए थे, वो गांव शहर में आ गया था।
चार लडको को पांच पांच हजार फुट जमीन दूर दूर देकर बाकी जमीन बेच सबके घर बनवा दिए। कुछ पैसे बचे तो लड़कियों को दे दिए। सरकारी नौकरी में रहने वाले रिटायर होकर अपने अपने घर में रहने लगे। मनोज, कचहरी में सहयोगी था उसके साथ रामनाथ रहने लगे। महेंद्र भी मनोज के ही साथ रहता ।
एक दिन रामनाथ, कचहरी में अर्जी लिखते लिखते अचेत हो गए। आनन फानन अस्पताल ले जाया गया तो दिल का दौरा पड़ने के कारण एक तरफ लकवा मार गया। चलने फिरने से अशक्त हो गए।
चारो भाई अस्पताल के वार्ड के बाहर खड़े थे
मनोज ने सबको पास देख बोला “गुड़िया का बारहवीं का एक सप्ताह बाद पेपर है, मुझे कचहरी का काम देखना है, आप तीनों रिटायर हो गए हो, बाबू जी को कौन रखेगा ये तय कर लीजिए। वैसे भी महेंद्र को मैं देख ही रहा हू”
सबसे बड़ा रमेश था ।बाकी भाईयो ने रमेश की तरफ देखा
“मेरे तरफ क्यों देख रहे हो मुझे तो बाबू जी ने सबसे पीछे का प्लॉट दिया है ,वो भी दक्षिण मुखी, जब से रह रहा हूं परेशान हूं। तुम्हारी भाभी को कुछ सुनाई नहीं पड़ता। हम दो लोग नही सम्हाल पाएंगे। महेश और मनोज, तुम दोनो में कोई भी बाबू जी को रख लो।” इतना कह रमेश निकल लिया
मेरे घर में जगह ही कहां है। दो कमरा ही बनवाया हूं।एक में हर्षित एम टेक की तैयारी कर रहा है। दूसरे कमरे में हम लोग रह रहे है। हां, सात आठ महीने में एक कमरा बनवा लेता हूं तब तक मनोज तुम बाबू जी को अपने पास रख लो।”
अपना पल्ला झाड़ महेश भी चला गया।
” विवेक, बाबू जी को कल अस्पताल से छुट्टी मिलेगी।तुम घर जाकर इंतजाम कर लो” मनोज इतना कह कर कचहरी चला गया।
विवेक घर आकर अपनी पत्नी को सारी बात बताया तो पत्नी झल्ला पड़ी
क्यों दोनो इंजीनियर बेटो की पढ़ाई पर बाबू जी ज्यादा पैसा खर्च किया है तो रखने की जिम्मेदारी उनकी है। तुम क्यों मुंह सील कर खड़े थे। थमा दिए बीमार बाबू जी को। तुम खुद दमा के मरीज हो एकात और बड़ी बीमारी बता क्यों नही दिए। मैं अपने घर में बाबू जी को नहीं रखूंगी।तुम रात को मेरे घर अकलतरा चले जाओ।जब बाबू जी की व्यवस्था हो जायेगी तो आ जाना।”
विवेक को सलाह बेहतर लगी।रात ही में विवेक, अकलतरा चला गया।
अस्पताल में रात भर मनोज, बाबू जी के पास रहा। सुबह कोई भी भाई नही आए तो नर्स को नहाकर घर आने की बात कह घर चला गया।
“क्यों बाबू जी कैसे है” किसके घर में रहेंगे बाबू जी”मनोज की पत्नी कीर्ति ने पूछा
किस किस घर में नही रहेंगे ये पूछो। रमेश और महेश भईया तो मुसीबत गिना कर चले गए। मैं विवेक को बोला हूं लेकिन लगता नही कि वो भी रखेगा। मैने गुड़िया की परीक्षा की बात बता कर साफ बोल दिया हूं कि बाबू जी को मैं नही रख पाऊंगा।
“ये बोले कि नही कि महेंद्र को हम लोग रखे है”कीर्ति ने पूछा
“हां भई बता दिया हूं।सुनो मैं कचहरी जाऊंगा ।बाबू जी का बहुत सा काम अधूरा है उसे पूरा करना है।”
“एक बात बताओ, बाबू जी को अस्पताल में भर्ती कौन करवाया है?”कीर्ति ने पूछा
“ले तो मैं गया था लेकिन अस्पताल में कागजी कार्यवाही रमेश भइया करवाए है “
“मतलब फोन नंबर उन्ही का लिखा होगा”
“फोन नंबर से क्या मतलब कीर्ति तुम्हारा?”
“भगवान न करे बाबू जी को कुछ हो,अगर हो गया तो बड़े भइया को ही खबर मिलेगी”
“शुभ शुभ बोलो, अटैक आया था एक तरफ लकवा मार दिया है।ठीक हो जायेंगे।”
मनोज कचहरी चला गया।
एक घंटे बाद, मनोज के घर की कॉल बेल बजी
कीर्ति बाहर निकली तो रमेश भइया खड़े थे
“बाबू जी नही रहे।उनको अटैक आया और डेथ हो गई। मनोज कचहरी गया है क्या?”
“जी”
“डेड बॉडी का कैसा करे, ये पूछने आया था।”.
“भईया, एक सप्ताह बाद गुड़िया का पेपर है। “
मैं देखता हूं।कहकर रमेश चला गया।
अस्पताल में दो घंटा इंतजार करने के बाद कोई नही आया तो रामनाथ के डेड बॉडी को एंबुलेंस में रख कर रमेश के पते पर भेज दिया गया।
एंबुलेस चालक, रमेश के घर पहुंचा तो रमेश की पत्नी ने रमेश के घर में न होने की बात कह महेश के घर की तरफ इशारा कर दिया।
एंबुलेंस महेश के घर के सामने पहुंची
महेश ने विवेक के घर का पता बता दिया
विवेक के घर एंबुलेंस पहुंची तो विवेक की पत्नी ने अकलतरा जाने की बात बता मनोज के घर की ओर इशारा कर दिया।
एंबुलेंस मनोज के घर के सामने खड़ी हो गई।
चालक ने घंटी बजाया
कीर्ति बाहर निकली।
“जी बताइए”
” ये चौथा घर है ।पीछे के तीन घर वाले एक के बाद एक पता दे रहे है।आपके घर छोडूं या आप भी कोई नया पता बताएंगी” चालक की बातों में झल्लाहट थी।
“आपको कोई फोन नंबर और पता तो मिला होगा न।उसी पते पर छोड़िए। और हां न माने तो भी छोड़ दीजिएगा। आखिर आपको किसी पते पर छोड़ने की जिम्मेदारी दी गई है ना।”
“मैं समझ गया बाई जी, अच्छा हुआ ये आदमी बिना सच जाने मर गया। ये बीमार रहता और जीता तो पता नहीं क्या हाल हुआ होता। मैं कही नही जा रहा।सीधे अस्पताल जाकर लावारिश बता देता हूं। स्वर्ग आरोहण संस्था है ऐसे लोगो का अंतिम संस्कार करती है। दशगात्र, तेरहवीं, पिंड दान, बरसी सब करवाती है।” चालक ने एंबुलेंस चालू कर रवाना हो गया।
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